एक डॉक्टर मित्र हमारे स्वर्ग सिधार। कोरोना से मर गए, सांत्वना देने हम उनके घर गए।
उनकी नन्ही-सी बिटिया भोली-नादान थी जीवन-मृत्यु से अनजान थी।
हमेशा की तरह द्वार पर आई, देखकर मुस्कुराई। उसकी नन्ही सच्चाई दिल को लगी बेधने, बोली-- अंकल! भगवान जी बीमार हैं न पापा गए हैं देखने।
- अशोक चक्रधर
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