जब हम अपना जीवन, जननी हिंदी, मातृभाषा हिंदी के लिये समर्पण कर दे तब हम किसी के प्रेमी कहे जा सकते हैं। - सेठ गोविंददास।
यह चिंता है | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:त्रिलोचन
 

यह चिंता है वह चिंता है
जी को चैन कहाँ मिलता है

फूल आनंद का बहुत खोजा,
कब आता है, कब खिलता है

कहा किसी ने नहीं, "सुखी हूँ"
देखा सबको व्याकुलता है

जीवन पथ पर जिन को देखा
उन सब से मन की ममता है

कैसे कहा था तूने त्रिलोचन
इष्ट आप ही आ मिलता है

-त्रिलोचन

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