बादल ही क्यों ना फट जाएँ तेरे पीछे मे रोती भी नहीं मेरे आंसुओं को भी तेरी ही उँगलियों से पुंछने की आदत है। तुझे पाकर ही छलकता है भरा मन तुझे पाकर ही टूटता है बाँध तुझे पाकर ही लौटती है होंठों पर गुनगुनाहट तुझे पाकर ही खिलती है उजली धूप से मुस्कान। तुझसे ही प्राण पाती हैं मेरी संवेदनाएं तुझसे ही जागती है मेरी चेतना तुझे पा लेती हूँ तो जी जाती हूँ।
-प्रीता व्यास न्यूज़ीलैंड
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