नहीं आती हँसी अब हर बात पर लेकिन ये मत समझना कि मुझे कोई दर्द या ग़म है बस नहीं आती हँसी अब हर बात पर
अगर हँस दें, कहीं तुम ये न समझ बैठो कि मैं खुश हूँ अपनी हालात पर नहीं तो ठहाके लगाना हमें भी आता है
हाँ, तकलीफ़ बहुत हैं वो ही, जो हर आम आदमी की होती है अब आपको क्या गिनाऊँ-- ये तो अब घर-घर की कहानी है लेकिन ये मत समझना कि मुझे कोई दर्द या ग़म है बस नहीं आती हँसी अब हर बात पर
लेकिन अब डर लगता है, डर लगता है उन शातिरों से जो अंदर तक झाँककर मेरी रूह को निगल जाती है डर लगता है उस निकटता से जिसमें डसने वाला एहसास है डर लगता है उन वायदों से जिससे सड़न-सी बदबू आती है डर लगता है उन खुशियों से जिसमें दिए नहीं हम खुद जल जाते हैं
डर लगता है ... अपनी औकात से जो ज़िंदगी भर वो ही की वो रह जाती है खूँटियों पर टंगे फटे चद्दर-सी
सालों पहले लिखे स्टेटस को ही अपडेट कर लेते हैं बार-बार साल-दर-साल क्योंकि नया तो कुछ भी नहीं न ही सोच बदली न ही दशा, न दिशा खड़े तो हम अब भी वहीं हैं जहाँ से सफ़र की शुरुआत की थी, तो फिर स्टेटस क्या बदलें जब स्टेटस ही नहीं बदला.... लेकिन चेहरा छुपाए वो स्माइली वाली मुस्कान देना अब सीख चुके हैं सीख चुके क्या ..अब तो आदत सी हो गई है .. क्योंकि आम आदमी तो हम भी हैं
आम आदमी तो हम भी हैं फिर भी पता नहीं क्यों नहीं आती हँसी अब हर बात पर
- श्रद्धांजलि हजगैबी-बिहारी ईमेल : hajgaybeeanjali@gmail.com |