छुपा लेता हूँ अपने आक्रोश को नाखून में छुपा लेता हूँ अपने विरोध को दांतों में बदल देता हूँ अपमान को हँसी में आत्मसम्मान पर होने वाले हर प्रहार से सींचता हूँ जिजीविषा को नहीं! ना पोस्टर, ना नारे, ना इंकलाब मन के गहरे पोखर से ढूंढ कर लाता हूँ शब्द पकाता हूँ उसे भीतर की आंच पर बदलता हूँ कविता में लाकर रख देता हूँ मोर्चे पर
- अनिल जोशी उपाध्यक्ष, केंद्रीय हिंदी शिक्षण मंडल शिक्षा मंत्रालय, भारत |