काँटों की शैया में जिसने कोमलता को छोड़ा ना, चुभन पल-पल होने पर भी साहस जिसने तोड़ा ना।
जो विकसित संघर्ष में होता काँटों से लोरी सुनता, धैर्य सदा ही मन में रखता नहीं विपदा से वह डरता।
पास आ मुझे कहता वो जीवन में हर कष्ट सहो, संकट की इन घड़ियों में आगे बढ़ते सदा रहो।
- रमेश पोखरियाल 'निशंक' [ मातृभूमि के लिए ] |