कुछ को मोहन भोग बैठ कर हो खाने को कुछ सोयें अधपेट तरस दाने-दाने को कुछ तो लें अवतार स्वर्ग का सुख पाने को कुछ आयें बस नरक भोग कर मर जाने को श्रम किसका है, मगर कौन हैं मौज उड़ाते हैं खाने को कौन, कौन उपजा कर लाते?
- त्रिशूल [पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही'] [1921]
विशेष: पं. गयाप्रसाद शुक्ल 'सनेही' सनेही नाम से ये परंपरागत और रससिद्ध कवितायें करते थे और त्रिशूल उपनाम से ये समाजसुधार और स्वाधीनता प्रेम की कविता किया करते थे। |