एक पत्थर फेंका गया मेरे घर में फ़ेंकना चाहती थी मैं भी उसे किसी शीश महल में पर आ किसी ने हाथ रोक लिए मंदिर में सजा दिया उसे अब हो व्याकुल कहीं नमी देखते ही बो देना चाहती हूँ आस्था विश्वास के बीज लहलहा उठे फसलें हृदय हो उठे फिर शस्य श्यामलां
-सुनीता शर्मा ऑकलैंड, न्यूज़ीलैंड ई-मेल: adorable_sunita@hotmail.com
|