परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
जो समर में हो गए अमर (काव्य)    Print  
Author:नरेंद्र शर्मा
 

जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रद्धा-गीत धन्यवाद में
जो समर में हो गए अमर ...

लौट कर न आएंगे विजय दिलाने वाले वीर
मेरे गीत अंजली में उनके लिए नयन-नीर
संग फूल-पान के
रँग हैं निशान के
शूर वीर आन के
जो समर में हो गए अमर ...

विजय के फूल खिल रहे हैं, फूल अध-खिले झरे
उनके खून से हमारे खेत-बाग-बन हरे
ध्रुव हैं क्राँति-गान के
सूर्य नव-विहान के
शूर वीर आन के
जो समर में हो गए अमर ...

वो गए कि रह सके स्वतंत्रता स्वदेश की
विश्व भर में मान्यता हो मुक्ति के संदेश की
प्राण देश प्राण के
मूर्ति स्वाभिमान के
शूर वीर आन के

जो समर में हो गए अमर, मैं उनकी याद में
गा रही हूँ आज श्रद्धा-गीत धन्यवाद में

-स्व॰ पंडित नरेंद्र शर्मा

स्वर: लतामंगेश्कर
गीतकार: स्व॰ पंडित नरेंद्र शर्मा
संगीतकार: जयदेव
चित्रपट: ग़ैर फ़िल्मी गीत

 

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