जो है समर्थ, जो शक्तिमान, जीवन का है अधिकार उसे। उसकी लाठी का बैल विश्व, पूजता सभ्य-संसार उसे!
दुर्बल का घातक दैव स्वयं, समझो बस भू का भार उसे। 'जैसे को तैसा'-- नियम यही, होना ही है संहार उसे।
है दास परिस्थितियों का नर, रहना है उसके अनुसार उसे। जीता है योग्य सदा जग में , दुर्बल ही है आहार उसे।
तृण, झष पशु से नर-तन देता, जीवन विकास का तार उसे। वह शासन क्यों न करे भू पर, चुनना है सब का सार उसे।
-सुमित्रानंदन पंत
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