परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
गुरुदक्षिणा  (काव्य)    Print  
Author:जैनन प्रसाद | फीजी
 

सायक बिकते हैं
धनुः विद्या भी बिकती है
पर बिकते नहीं हैं तो केवल
द्रोणचार्य जैसे गुरु।
लेकिन
सौभाग्य से अगर
मिल भी गए
और कृपालु हों वे
अर्जुन ही समझ लें तुम्हें
तो किंकर्तव्यविमूढ़ की भांति
तुम लक्ष्य अनुसंधान कर पाओगे?
भेद पाओगे! क्या?
वह आँख?
अगर इस दुष्कर कार्य में
सफलता मिल भी गई
तो मांग बैठेगा तुमसे !
गुरुदक्षिणा !
जो तुम दे नहीं पाओगे
क्योंकि तुम
एकलव्य नहीं हो।

-जैनन प्रसाद
 ई-मेल: jprasad@unicef.org

 

Back
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें