अपनी सरलता के कारण हिंदी प्रवासी भाइयों की स्वत: राष्ट्रभाषा हो गई। - भवानीदयाल संन्यासी।
दर्द के पैबंद | ग़ज़ल (काव्य)    Print  
Author:रेखा राजवंशी | ऑस्ट्रेलिया
 

मखमली चादर के नीचे दर्द के पैबंद हैं
आपसी रिश्तों के पीछे भी कई अनुबंध हैं।

दोस्त बन दुश्मन मिले किसका भरोसा कीजिए
मित्र अपनी साँस पर भी अब यहाँ प्रतिबंध है।

तोड़ औरों के घरौंदे घर बसा बैठे हैं लोग
फिर शिकायत कर रहे क्यों टूटते संबंध हैं।

दूसरों पर पाँव रखकर चढ़ रहे हैं सीढ़ियाँ
और कहते हैं उसूलों के बहुत पाबंद हैं।

दिन ज़रा अच्छे हुए तो आसमाँ छूने लगे
अब गरीबों के लिए घर-बार उनके बंद हैं।

-रेखा राजवंशी, ऑस्ट्रेलिया

[साभार: कंगारुओं के देश में, किताबघर प्रकाशन, नयी दिल्ली] 

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