सुनाएँ ग़म की किसे कहानी हमें तो अपने सता रहे हैं। हमेशा सुबहो-शाम दिल पर सितम के खंजर चला रहे हैं।।
न कोई इंग्लिश न कोई जर्मन न कोई रशियन न कोई टर्की। मिटाने वाले हैं अपने हिन्दी जो आज हमको मिटा रहे हैं।।
कहाँ गया कोहिनूर हीरा किधर गयी हाय मेरी दौलत। वो सबका सब लूट करके उलटा हमीं को डाकू बता रहे हैं।।
जिसे फ़ना वो समझ रहे हैं वफ़ा का है राज इसी में मुजमिर। नहीं मिटाये से मिट सकेंगे वो लाख हमको मिटा रहे हैं।।
जो है हुकूमत वो मुदद्ई है जो अपने भाई हैं हैं वो दुश्मन। ग़ज़ब में जान अपनी आ गयी है क़ज़ा के पहलू में जा रहे हैं।।
चलो-चलो यारो रिंग थिएटर दिखाएँ तुमको वहाँ पे लिबरल। जो चन्द टुकडों पे सीमोज़र के नया तमाशा दिखा रहे हैं।।
खमोश 'हसरत' खमोश 'हसरत' अगर है जज़्बा वतन का दिल में। सज़ा को पहुंचेंगे अपनी बेशक, जो आज हमको फँसा रहे हैं।।
--अशफ़ाक़उल्ला ख़ाँ
|