इस सोते संसार बीच, जग कर सज कर रजनी वाले ! कहाँ बेचने ले जाती हो, ये गजरे तारों वाले ?
मोल करेगा कौन, सो रही हैं उत्सुक आँखें सारी । मत कुम्हलाने दो, सूनेपन में अपनी निधियाँ न्यारी ॥
निर्झर के निर्मल जल में, ये गजरे प्रतिबिंबित धोना । लहर हहर कर यदि चूमे तो, किंचित् विचलित मत होना ॥
होने दो प्रतिबिम्ब विचुम्बित, लहरों ही में लहराना । लो मेरे तारों के गजरे निर्झर-स्वर में यह गाना ॥
यदि प्रभात तक कोई आकर, तुम से हाय न मोल करे। तो फूलों पर ओस-रूप में बिखरा देना सब गजरे॥
- रामकुमार वर्मा (अंजलि से)
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