सतयुग, त्रेता, द्वापर बीता, बीता कलयुग कब का, बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका। बेटी-युग में खुशी-खुशी है, पर मेहनत के साथ बसी है। शुद्ध-कर्म निष्ठा का संगम, सबके मन में दिव्य हँसी है। नई सोच है, नई चेतना, बदला जीवन सबका, बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका। इस युग में ना परदा बुरका, ना तलाक, ना गर्भ-परिक्षण। बेटा बेटी, सब जन्मेंगे, सबका होगा पूरा रक्षण। बेटी की किलकारी सुनने, लालायित मन सबका। बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका। बेटी भार नहीं इस युग में, बेटी है आधी आबादी। बेटा है कुल का दीपक, तो, बेटी है दो कुल की थाती। बेटी तो शक्ति-स्वरूपा है, दिव्य-रूप है रब का। बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका। चौके चूल्हे वाली बेटी, बेटी-युग में कहीं न होगी। चाँद सितारों से आगे जा, मंगल पर मंगलमय होगी। प्रगति-पंथ पर दौड़ रहा है, प्राणी हर मज़हब का। बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।
--आनन्द विश्वास ई-मेल: anandvishvas@gmail.com
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