हिंदी भाषा को भारतीय जनता तथा संपूर्ण मानवता के लिये बहुत बड़ा उत्तरदायित्व सँभालना है। - सुनीतिकुमार चाटुर्ज्या।
उतने सूर्यास्त के उतने आसमान (काव्य)    Print  
Author:आलोक धन्वा
 

उतने सूर्यास्त के उतने आसमान
उनके उतने रंग
लम्बी सड़कों पर शाम
धीरे बहुत धीरे छा रही शाम
होटलों के आसपास
खिली हुई रोशनी
लोगों की भीड़
दूर तक दिखाई देते उनके चेहरे
उनके कंधे, जानी-पहचानी आवाज़ें
कभी लिखेंगे कवि इसी देश में
इन्हें भी घटनाओं की तरह।

-आलोक धन्वा

 

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