जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
चल मन | रैदास के पद  (काव्य)    Print  
Author:रैदास | Ravidas
 

चल मन! हरि चटसाल पढ़ाऊँ।।
गुरु की साटी ग्यान का अच्छर,
बिसरै तौ सहज समाधि लगाऊँ।।
प्रेम की पाटी, सुरति की लेखनी,
ररौ ममौ लिखि आँक लखाऊँ।।
येहि बिधि मुक्त भये सनकादिक,
ह्रदय बिचार प्रकास दिखाऊँ।।
कागद कँवल मति मसि करि निर्मल,
बिन रसना निसदिन गुन गाऊँ।।
कहै रैदास राम भजु भाइ,
संत राखि दे बहुरि न आऊँ।।

- रैदास

 

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