जाता साल
(संवाद 2018 से)
करीब पचास साल पहले तुम्हारा एक पूर्वज मुझे यहाँ लाया था, फिर- बरस बीतते गए कुछ बचपन के कुछ अल्हड़पन के कुछ गुमानी के कुछ गुमनामी के, कुछ में सुनी कहानियाँ कुछ में सुनाई कहानियाँ कुछ में लिखी डायरियाँ कुछ में फाड़ीं डायरियाँ, कुछ सपनों वाले कुछ अपनों वाले कुछ हकीकत वाले कुछ बेगानों वाले, कुछ दुनियावी सवालों के जवाब उतारते कुछ तज़ुर्बे को अल्फाज़ में ढालते, साल-दर-साल कभी हिम्मत, कभी हौसला और हमेशा दिन खत्म होते गए कैलेंडर के पन्ने उलटते और फड़फड़ाते गए......... लो, तुम्हारे भी जाने का वक्त आ गया पंख फड़फड़ाने का वक्त आ गया पर रुको, सुनो- जब भी बीता एक दिन, एक घंटा या एक पल तुम्हारा मुझ पर ये उपकार हुआ मैं पहिले से ज़ियादा त़ज़ुर्बेकार हुआ, समझ चुका हूँ भ्रमण नहीं है परिभ्रमण नहीं है जीवन परिक्रमण है सो- चोले बदलते जाते हैं नए किस्से गढ़ते जाते हैं, पड़ाव आते-जाते हैं कैलेंडर हो या जीवन बस चलते जाते हैं।
- संजय भारद्वाज, पुणे, भारत 09890122603
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आता साल
(संवाद 2019 से)
शायद कुछ साल या कुछ महीने या कुछ दिन या....पता नहीं; पर निश्चय ही एक दिन, तुम्हारा कोई अनुज आएगा यहाँ से मुझे ले जाना चाहेगा, तब तुम नहीं मैं फड़फड़ाऊँगा अपने जीर्ण-शीर्ण अतीत पर इतराऊँगा शायद नहीं जाना चाहूँ पर रुक नहीं पाऊँगा, जानता हूँ- चला जाऊँगा तब भी कैलेंडर जन्मेंगे-बनेंगे सजेंगे-रँगेंगे रीतेंगे-बीतेंगे पर- सुना होगा तुमने कभी इस साल 14, 24, 28, 30 या 60 साल पुराना कैलेंडर लौट आया है बस, कुछ इसी तरह मैं भी लौट आऊँगा नए रूप में, नई जिजीविषा के साथ, समझ चुका हूँ- भ्रमण नहीं है परिभ्रमण नहीं है जीवन परिक्रमण है सो- चोले बदलते जाते हैं नए किस्से गढ़ते जाते हैं, पड़ाव आते-जाते हैं कैलेंडर हो या जीवन बस चलते जाते हैं।
-संजय भारद्वाज, पुणे 09890122603 |