मैं नीर भरी दुःख की बदली, स्पंदन में चिर निस्पंद बसा, क्रंदन में आहत विश्व हँसा, नयनो में दीपक से जलते, पलकों में निर्झनी मचली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मेरा पग पग संगीत भरा, श्वांसों में स्वप्न पराग झरा, नभ के नव रंग बुनते दुकूल, छाया में मलय बयार पली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
मैं क्षितिज भृकुटी पर घिर धूमिल, चिंता का भर बनी अविरल, रज कण पर जल कण हो बरसी, नव जीवन अंकुर बन निकली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
पथ न मलिन करते आना पद चिन्ह न दे जाते आना सुधि मेरे आगम की जग में सुख की सिहरन हो अंत खिली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
विस्तृत नभ का कोई कोना मेरा न कभी अपना होना परिचय इतना इतिहास यही उमटी कल थी मिट आज चली ! मैं नीर भरी दुःख की बदली !
- महादेवी वर्मा |