जलती सूखी जमीन ठूँठ-से खड़े पेड़ अंतिम संस्कार की प्रतीक्षा करती पीली घास, लू के गर्म शरारे दरकती माटी की दरारें इन दरारों के बीच पड़ा वो बीज..., मैं निराश नहीं हूँ ये बीज मेरी आशा का केन्द्र है। ये, जो अपने भीतर समाये है असीम संभावनाएँ- वृक्ष होने की छाया देने की बरसात देने की फल देने की और हाँ; फिर एक नया बीज देने की, मैं निराश नहीं हूँ ये बीज मेरी आशा का केन्द्र है।
-संजय भारद्वाज |