दुबले पतंगी कागज़ का उड़ता हुआ टुकड़ा नहीं प्रसूती मन की बलवती संतान हैं।
तन, बदन, रूप और आकार कुछ होता नहीं पिंजड़े से निकल भागें फिर पकड़ कर बताए कोई दिल पर राज करतीं हैं।
रंगीन तितली बैठती है फूल फूल पर मेरे साथ हम बात करते हैं मधु कलश लेकिन भर नहीं पाता कभी प्यास बनी रहती है।
इच्छा की, तभी तो पैर आगे बढ़ गया, वर्ना पड़ा होता दक्षिणी अफ्रीका की कंदराओं में जंगली जानवर।
ले जाती है दोनों हाथ बांधे दौड़ते अश्व के पीछे किसी अपराधी की तरह।
डोज़र है जंगल पहाड़ों को काट कर रास्ता बनाती। विंध्याचल झुक जाता है अगस्त मुनि को रास्ता देने।
नदी पर पुल, समुन्दर पर जहाज बन जातीं हैं इच्छाएं लिफ्ट हैं मंजिलें चढ़ने के लिए। नई खोज नए आविष्कार की जननी। आकाश को फाड़ कर दूसरा ब्रह्मांड खोजने जाना चाहतीं हैं इच्छाएं।
-शिव नारायण विमल |