जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
अकबर और तुलसीदास (काव्य)    Print  
Author:सोहनलाल द्विवेदी | Sohanlal Dwivedi
 

अकबर और तुलसीदास,
दोनों ही प्रकट हुए एक समय,
एक देश,  कहता है इतिहास;

'अकबर महान'
गूँजता  है आज भी कीर्ति-गान,
वैभव प्रासाद बड़े
जो थे सब हुए खड़े
पृथ्वी में आज गड़े!

अकबर का नाम ही है शेष सुन रहे कान!
किंतु कवि
तुलसीदास!
धन्य है तुम्हारा यह
रामचरित का प्रयास,
भवन है तुम्हारा अचल,
सदन यह तुम्हारा विमल,
आज भी है अडिग खड़ा,
उत्सव उत्साह बड़ा,
पाता है वही जो जाता है तीर में!

एक हुए सम्राट
जिनका विभव विराट
एक कवि,--रामदास
कौड़ी भी नहीं पास,
किंतु,  आज चीर महा कालों की
तालों को,
गूंजती है,  नृपति की नहीं,
कवि की ही वाणी गंभीर!
अकबर:  महान जैसे मृत
तुलसीदास:  अमृत!

-सोहनलाल द्विवेदी

 

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