परमात्मा से प्रार्थना है कि हिंदी का मार्ग निष्कंटक करें। - हरगोविंद सिंह।
हिंदी की दुर्दशा | हिंदी की दुर्दशा | कुंडलियाँ  (काव्य)    Print  
Author:काका हाथरसी | Kaka Hathrasi
 

बटुकदत्त से कह रहे, लटुकदत्त आचार्य।
सुना? रूस में हो गई है हिंदी अनिवार्य।।
है हिंदी अनिवार्य, राष्ट्रभाषा के चाचा-
बनने वालों के मुँह पर क्या पड़ा तमाचा।।
कहँ ‘काका', जो ऐश कर रहे रजधानी में।
नहीं डूब सकते क्या चुल्लू भर पानी में।।

-काका हाथरसी

#

पुत्र छदम्मीलाल से, बोले श्री मनहूस।
हिंदी पढ़नी होये तो, जाओ बेटे रूस।।
जाओ बेटे रूस, भली आई आज़ादी।
इंग्लिश रानी हुई हिंद में, हिंदी बाँदी।।
कहँ ‘काका' कविराय, ध्येय को भेजो लानत।
अवसरवादी बनो, स्वार्थ की करो वक़ालत।।

-काका हाथरसी

 

Back
 

सब्स्क्रिप्शन

सर्वेक्षण

भारत-दर्शन का नया रूप-रंग आपको कैसा लगा?

अच्छा लगा
अच्छा नही लगा
पता नहीं
आप किस देश से हैं?

यहाँ क्लिक करके परिणाम देखें

इस अंक में

 

इस अंक की समग्र सामग्री पढ़ें