प्रेमचंद के जीवन के विषय में आप सबने बहुत कुछ पढ़ा और सुना होगा। उनके जीवन की मुख्य घटनाओं के उल्लेख की या उनके साहित्य की किसी सूची की यहां आवश्यकता नहीं है। उनके विषय में आज साधारण विधार्थी भी जितना आवश्यक है उतना जानता है, कि वह कब पैदा हुए, कितने दिन गरीबी से किस प्रकार संघर्ष करते रहे, कब दिवंगत हुए, उनकी पैतृक संपदा क्या थी, उनकी शिक्षा किन आपदाओं के बीच हुई, उनका जीवन कितना सीधा-सादा सामान्य तथा अभावों से पूर्ण था। वह किसानों और निम्नतम निम्नमध्य वर्ग की सीमा के प्रतिनिधि थे। आजीवन उन्होंने इसको स्वीकार किया। अपने वर्ग की समस्त असंगतियों, विभीषिकाओं को झेला, उनसे संघर्ष किया और अंत में परास्त भी हुए, क्योंकि मेरा विश्वास है कि यदि जीवन की सामान्यतम सुविधाएं भी उनको उपलब्ध होतीं तो वह अपना जीवन कम से कम दो दशक तो खींच ले जाते। यह इतना कड़वा सत्य है कि इसे स्वीकार करते समय मैं कांप जाता हूं। पर यह कहता इसलिए हूं कि अब तक उनके अंदर वह मानसिक चैतन्य और जीवनी शक्ति थी, जो उनको जीने पर विवश करती थी। किंतु शरीर ने साथ नहीं दिया। अंत तक वह सांसारिक और छोटी-छोटी चिंताओं से मुक्त नहीं हो सके, जीवन की न्यूनतम सुविधाएं नहीं जुटा सके। पर यह सच अब ऐतिहासिक तथ्य है और आप इसे जानते हैं, जानकर क्लेश पाते हैं। जो बात नहीं जानते वह शायद यह है कि उनकी मानवता किस कोटि की थी। आज वह शब्द इतना हलका हो गया है, कि इसे जितना भी चाहे उछाल सकते हैं पर प्रेमचंद के काल में यह न तो इतना हलका ही था, न इतना प्रचलित। इस समय मानवतावादी होना एक कठिन तपस्या थी। एक बलिदान था, जो तब की परिस्थितियों में और भी कष्टसाध्य था। पर प्रेमचंद की अंतरतम गहराइयों में इस मानवता के अलावा जीने का कोई प्रयोजन, कोई तक नहीं था। वह मानव प्रेम उनके अस्तित्व का एकमात्र सम्बल था। इस तथ्य को लोगों ने इतनी गहराई से नहीं पकड़ा है जितना कि और बातों को। उनका सारा जीवन अपने आदर्शों की स्थापना और पुनर्स्थापना में बीता। उनका व्यक्तिगत और सार्वजनिक जीवन समान था। उनके व्यक्तित्व में कहीं किसी प्रकार की विसंगति न थी। मानवता को वह सच्चे हृदय से प्रेम करते थे। इसमें किसी प्रकार का दिखावा न था, उनका मानव प्रेम वह नकाब या मुखौटा न था तो आज की सभ्यता का सबसे बड़ा अस्त्र है और जिसके उपयोग से इस और परलोक की साधना की जाती है। उनकी मानवता वह तात्विक टट्टी न थी, जिसके पीछे से शिकार करना सभी दृष्टियों से निरापद होता है। उनका मानव प्रेम वह नकारात्मक निर्लिप्ति नहीं थी जिसमें मानवता के प्रति एक निर्दय उपेक्षा का भाव ही प्रधान होता है। यही गहनतम सचाई उनके साहित्य के प्रत्येक शब्द में मुखरित है और वही उनके साहित्य की महानता का रहस्य है। उनसे बड़े साहित्यकारों की विश्व-साहित्य में कमी नहीं है। वहां महान विभूतियों का एक अक्षय भंडार है। पर प्रेमचंद यदि वहां पहुचंते हैं तो अपने व्यवहार और दर्शन की एकात्मकता के बल पर ही, क्योंकि साहित्य वह मुकुर है, जिसमें साहित्यकार की सच्ची तस्वीर दिखाई देती है। उस दृष्टि से प्रेमचंद भारतीय साहित्य में अद्वितीय हैं। प्रेमचंद के साहित्य की सबसे बड़ी विशेषता उसकी पारदर्शी सच्चाई है, जो उस साहित्य के सृजक के व्यक्तित्व की सबसे बड़ी थाती थी। उनका व्यक्तित्व ही उनके साहित्य में मुखर हो उठा, मूर्त हो उठा। कहा जाता है कि उनके साहित्य का कला पक्ष निर्बल था। यदि इस कथन में कोई तथ्य है तो यही हो सकता है कि नग्न, कठोर सत्य संभवतः उतना कलापूर्ण नहीं होता, जितना ढका हुआ असत्य। उनके चरित्र इतने प्राणवान्, इतने सशक्त इसीलिए हैं कि वे अपनी सभ्यता में, अपनी संपूर्णता में उद्घाटित हुए हैं। प्रेमचंद ने अपने जीवन के विशाल अनुभव से उनको अनुप्रमाणित किया और उस अनुभव से स्वयं उनका जीवन, उनकी मान्यताएं, उनका आदर्श, उनका जीवन-दर्शन सभी कुछ आलोकित हुआ। यही उनकी महानता, उनकी सर्वप्रियता का रहस्य है। इस तथ्य को, इस सचाई को बार बार दुहराने की आवश्यकता इसीलिए हैं कि इसी में उनके साहित्य के स्रोत हैं। जो साहित्यकार अपनी धरती, अपने आकाश, अपने पेड़, पल्लव, अपने अनुजों के जितना समीप होता है वह उतना ही बड़ा द्रष्टा होता है। उसे वह दृष्टि मिलती है, जो उसके मन प्राण को आलोक प्रदान करती है और वह भविष्य के अदृष्ट को भी वेध सकता है। इस दृष्टि से प्रेमचंद उस देश के इने गिने भविष्य दृष्टाओं में से एक थे।
जीवन एक अनवरत तपस्या और साधना है। इसे प्रेमचंद ने कभी नहीं भुलाया। उनका जीवन एक अर्पित जीवन था, इतना अर्पित, जितना बहुत कम लोगों का होता है, या हो सकता है। उन का सारा समय चिंतन मनन पर दुःखानुभव में बीतता था। उनको अपनी व्यक्तिगत चिंताओं के लिए समय नहीं था, क्योंकि वे देखते थे कि चारों ओर जो दैन्य, दुःख, क्लेश था वह उनकी निजी समस्याओं से कहीं अधिक करूण और सर्वग्राही था। ऐसी स्थिति में उन समस्याओं से (जो उनकी भी थी) संघर्ष करना जीवन का सबसे बड़ा कर्तव्य था। इस कर्त्तव्य का पालन उन्होंने आमरण किया।
प्रेमचंद के साहित्य की समीक्षा यहां अभीष्ट नहीं है। उनके लिए बहुत समय चाहिए। पर स्मरण रखने की बात हैं कि वे हिन्दी के आधुनिक कथा साहित्य के जनकों में थे। उनकी प्रारंभिक रचनाओं की प्रौढता उनके रचना कौशल का सबसे सबल प्रमाण है। उस समय उनके सामने हमारी भाषा में कोई दृष्टांत नहीं था। उसके भंडार की पूर्ति उन्होंने जिस कोटि की रचनाओं में से की वह हमारे लिए आज भी गौरव की बात है। उसका ऐतिहासिक महत्व संभवतः हम कुछ दशकों के बाद समझ सकेंगे। अभी तो वह इतना निकट है कि उसे निष्पक्ष होकर जांच सकना हमारे लिए संभव ही नहीं है। इसीलिए आज उनके विषय में जो मत-मतांतर हैं वे एक-दूसरे से इतने भिन्न हैं।
प्रेमचंद की सरलता बहुश्रुत है। यह सरलता न केवल उनके व्यक्तित्व की हैं वरन् उनके कृतित्व की भी है। इतनी सरल शैली में इतनी प्रभावकारी रचना उनकी अपनी विशेषता है। उनकी कृतियों में कहीं भी कोई गांठ, कोई उलझाव या अस्पष्टता नहीं मिलेगी। उनके विचार सुलझे हुए थे। जिसके कारण उनका साहित्य इतना सुस्पष्ट था। इसीलिए वे हिन्दी साहित्य के संपूर्ण इतिहास में सर्व लोकप्रिय लेखकों में से एक हैं। वे कोटि-कोटि पाठकों के प्राणप्रिय कलाकार हैं और घर-घर में उनके साहित्य के माध्यम से जीवन में एक नई दृष्टि, एक अभूतपूर्व संस्कार आया है। वे जीवन की कठोरतम आपदाओं को झेलने की शक्ति और प्रेरणा देते हैं। सर्वोत्कृष्ट साहित्य का वह सबसे बड़ा गुण होना चाहिए।
प्रेमचंद के साहित्य में जो सर्वव्यापी जीवन अनुभव परिलक्षित होता है वह उनका अपना जीवन अनुभव है, कहीं से सुना सुनाया या पढ़ा पढ़ाया नहीं। इसीलिए उस अनुभव पर आधारित कृतित्व अधिक प्रभावकारी और विश्वसनीय है। सभी पात्र और सभी स्थितियां हम सबकी, आपकी, मेरी हैं और हम उनमें एकात्म होकर डूब जाते हैं और वे हमारे जीवन के परमार्जन में, उसे सह्य यहां तक कि मनोहारी बनाने में सफल होती हैं। यह भी उनकी अपार लोकप्रियता का रहस्य है। इस देश में असंख्य मनुष्यों को उनके साहित्य से वह प्रेरणा और आलोक प्राप्त हुआ है, जिससे उनको जीवन झेलने की अदम्य शक्ति और उत्साह प्राप्त हुआ है। साहित्य वह दर्पण है, जिसमें उनके सृजक के छोटे से छोटे गोपनीय से गोपनीय दोषों को छिपाना संभव नहीं। इसीलिए जहां कहीं दुराव न हो, वहां तो साहित्य स्वच्छ मुकुर की भांति हृदय की गहनतम भावनाओं को अति स्पष्टता से उजागर करता है।
एक भविष्य दृष्टा होने के कारण प्रेमचंद अपने युग से बहुत आगे बढ़ आए थे, सम्यक् वर्तमान से बहुत आगे तक देख सकते थे। अपने जीवन काल में ही वे पुरानी मध्यवित्तीय मान्यताओं का खोखलापन समझ चुके थे और अपने को उनसे मुक्त कर चुके थे। वह तात्विक निर्भान्तता, जो आज का बौद्धिक चमत्कार है उसे वे उस समय अनुभव कर चुके थे, जब औरों के लिए उसे समझना दुष्कर था। जीवन की पाठशाला में उन्होंने बहुत कुछ सीखा था और वह एक परिष्कृत, कलापूर्ण रूप में उनके प्रत्येक शब्द में प्रतिबिंबित हुआ है और मानवता उससे लाभान्वित हो सकती है। उनके साहित्य की महानता का प्रमुख कारण उनका जीवन पर आधारित अनुभव है, बुद्धि पर आधारित चमत्कार या विलास नहीं है। इसीलिए विश्व साहित्य में यदि उनकी तुलना किसी से की जा सकती है। यद्यपि ऐसी तुलना सदैव ही भ्रामक होती है-तो गोर्की हैं। प्रेमचंद के जीवन की अंतिम सार, सरलता, सत्य और मानवता है।
-श्रीपत राय
('कहानी' पत्रिका, श्रीपत राय स्मृति अंक, अगस्त-अक्टूबर 1994)
*श्रीपत प्रेमचंद के ज्येष्ठ पुत्र थे।