अशफ़ाक उल्ला खाँ भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के प्रमुख क्रान्तिकारियों में से एक थे। वे पं रामप्रसाद बिस्मिल के विशेष स्नेहपात्र थे। राम प्रसाद बिस्मिल की भाँति अशफाक उल्ला खाँ भी शायरी करते थे। उन्होंने काकोरी काण्ड में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी। ब्रिटिश शासन ने उनके ऊपर अभियोग चलाया और 19 दिसम्बर सन् 1927 को उन्हें फैजाबाद जेल में फाँसी पर लटका दिया गया। उनका उर्दू तखल्लुस/उपनाम 'हसरत' था। उर्दू के अतिरिक्त वे हिन्दी व अँग्रेजी में आलेख व कवितायें करते थे। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के इतिहास में बिस्मिल और अशफाक की भूमिका निर्विवाद रूप से हिन्दू-मुस्लिम एकता का बेजोड़ उदाहरण है। देश पर शहीद हुए इस शहीद की यह रचना:
बुज़दिलों को सदा मौत से डरते देखा।
गो कि सौ बार रोज़ ही उन्हें मरते देखा।।
मौत से वीर को हमने नहीं डरते देखा।
तख्ता-ए-मौत पे भी खेल ही करते देखा।
-अशफ़ाक उल्ला खाँ