अपने क्रोध के लिए विख्यात महर्षि दुर्वासा ने किसी बात पर प्रसन्न होकर देवराज इंद्र को एक दिव्य माला प्रदान की। अपने घमण्ड में चूर होकर इन्द्र ने उस माला को ऐरावत हाथी के मस्तक पर रख दिया। ऐरावत ने माला लेकर उसे पैरों तले रौंद डाला। यह देखकर महर्षि दुर्वासा ने इसे अपना अपमान समझा और क्रोध में आकर इन्द्र को शाप दे दिया।

दुर्वासा के शाप से सारे संसार में हाहाकार मच गया। रक्षा के लिए देवताओं और दैत्यों ने मिलकर समुद्र मंथन किया, जिसमें से अमृत कुम्भ निकला, किन्तु यह नागलोक में था। अतः इसे लेने के लिए पक्षिराज गरूड़ को जाना पड़ा। नागलोक से अमृत घट लेकर गरूड़ को वापस आते समय हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक इन चार स्थानों पर कुम्भ को रखना पड़ा और इसी कारण ये चार स्थान हरिद्वार, प्रयाग, उज्जैन और नासिक कुम्भस्थल के नाम से विख्यात हो गये।

[भारत-दर्शन संकलन]