12 अक्टूबर को निदा फ़ाज़ली का जन्म-दिवस होता है।
निदा फ़ाज़ली का निम्नलिखित दोहा बड़ा प्रसिद्ध है:
"बच्चा बोला देख कर, मस्जिद आलीशान अल्ला तेरे एक को, इतना बड़ा मकान"
इसके पीछे की राम कहानी एक बार फ़ाज़ली साहब ने बीबीसी को बताई थी जिसमें उन्होंने बताया था कि वे एक बार मुंबई के खार-डाँडा में रहते थे और उनका वन बेड रूम हॉल का फ़्लैट था।
समय के साथ किताबें बढ़ने लगीं तो घर छोटा पड़ने लगा। हर जगह किताबें ही किताबें, आने-जाने वाले मेहमानों के उठने-बैठने में तक्लीफ़ होने लगी तो उन्होंने थोड़ा बड़ा मकान लेने की सोची ताकि उसमें पुस्तकों की तादाद के लिए भी स्थान हो और आने-जाने वाले भी परेशान न हों।
बम्बई में घरों को बनाने वाली एक सरकारी संस्था है -महाडा। वह घर बनाती है, और घर बनाकर अख़बारों में विज्ञापन देती है।
फ़ाज़ली ने कहा कि सरकार से घर लेने में थोड़ी सी आसानी होती है. बेचने-खरीदने के एजेंट्स नहीं होते। रजिस्ट्रेशन का झंझट नहीं होता। वह रक़म भर दो और एक ही कागज़ लेकर मकान अपना कर लो।
फ़ाज़ली साहब ने भी अर्जी डाली...अर्जी डालने पर एक फार्म मिला, जिसे भरकर, क़ीमत के चेक के साथ कार्यालय में जमा करना था। इस फार्म को भरने लगे तो इसमें लिखी एक शर्त को देखकर वे ठिठक गए। शर्त थी -मकान उसी को मिलेगा, जिसके नाम पहले से कोई मकान न हो। फ़ाज़ली साहब के पास खार-डाँडा वाला मकान था। उन्हें एहसास हुआ कि जब तक पहला मकान बिक नहीं जाता दूसरा हाथ नहीं आएगा...क़ानून, क़ानून है उसका पालन करना ज़रूरी था। मगर इस क़ानून-पालन में काफ़ी समय लग गया।
इस उलझन को सुलझाने लगे तो फ़ाज़ली साहब को इंसान और भगवान का अंतर साफ़ नज़र आने लगा। वे कहते हैं कि इंसान एक घर होते हुए दूसरा घर नहीं ले सकता...मगर भगवान हर देश में, हर नगर में एक साथ कई-कई घरों का मालिक बन सकता है। इंसान एक ही नाम के सहारे पूरे जीवन बिता देता है, मगर वह एक ही वजूद के कई नाम के साथ भी किसी क़ानून की गिरफ्त में नहीं आता।
बस, मुंबई में एक छोटी सी खोली में रहने वाले बच्चे के आश्चर्य को फ़ाज़ली साहब ने उपरोक्त दोहे में अभिव्यक्त किया है।
[साभार -बीबीसी] |