राष्ट्रभाषा के बिना आजादी बेकार है। - अवनींद्रकुमार विद्यालंकार
संयुक्त राष्ट्र की महासभा में ऐतिहासिक संबोधन
 
 

अटल जी का संयुक्त राष्ट्र की महासभा में ऐतिहासिक हिन्दी संबोधन

4 अक्तूबर 1977 को संयुक्त राष्ट्र की महासभा में तत्कालीन विदेश मंत्री के रूप में अटल बिहारी वाजपेयी ने हिन्दी में महासभा को संबोधित करके एक नया इतिहास रचा था। भारत की ओर से पहली बार संयुक्त राष्ट्र महासभा में हिंदी में भाषण अटल बिहारी वाजपेयी ने ही दिया था। 4 अक्तूबर 1977 को विश्व भर के नेताओं ने अटल जी के भाषण के बाद खड़े होकर तालियाँ बजाते हुए उनका अभिनंदन किया। अटल जी के उस ऐतिहासिक संबोधन के मुख्य अंश यहाँ प्रस्तुत हैं--

मैं भारत की जनता की तरफ से राष्ट्र संघ के लिए शुभकामना संदेश लाया हूँ। महासभा के 32वें अधिवेशन के अवसर पर मैं भारत की दृढ़ आस्था को पुनः व्यक्त करना चाहता हूँ। शासन की बागडोर संभाले केवल छह मास हुए हैं। फिर भी इतने अल्प समय में हमारी उपलब्धियां उल्लेखनीय हैं। भारत में मूलभूत मानव अधिकार पुनः प्रतिष्ठित हो गए हैं। इस भय और आतंक के माहौल ने हमारे लोगों को घेर लिया था वह दूर हो गया है। 

ऐसे संवैधानिक कदम उठाए जा रहे हैं जिनसे सुनिश्चित हो सके कि लोकतंत्र और बुनियादी आजादी का फिर हनन नहीं होगा। अध्यक्ष महोदय ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की परिकल्पना पुरानी है। भारत में हमेशा से इस धारणा में विश्वास रहा है कि सारा संसार एक परिवार है। कई प्रयत्नों और कष्टों के बाद संयुक्त राष्ट्र के रूप में इस स्वप्न के अब साकार होने की संभावना है।

यहां मैं राष्ट्रों की सत्ता और महत्ता के बारे में नहीं सोच रहा हूं, आम आदमी की प्रतिष्ठा और प्रगति मेरे लिए अधिक महत्व रखती है। अंततः हमारी सफलताएं और असफलताएं केवल एक ही मापदंड से मापी जानी चाहिए कि क्या हम समस्त मानव समाज वस्तुतः हर नर, नारी और बालक के लिए न्याय और गरिमा की आश्वस्ती देने में प्रयत्नशील हैं। अफ्रीका में चुनौती स्पष्ट है। सवाल यह है कि किसी जनता को स्वतंत्रता और सम्मान के साथ रहने का अनपरणीय अधिकार है या रंगभेद में विश्वास रखने वाला अल्पमत किसी विशाल बहुमत पर हमेशा अन्याय और दमन करता रहेगा। 

निःसंदेह रंगभेद के हर रूप का जड़ से उन्मूलन होना चाहिए। इजराइल ने वेस्ट बैंक और गाजा में नई बस्तियां बसाकर अधिकृत क्षेत्रों में जनसंख्या परिवर्तन करने की जो कोशिश की है संयुक्त राष्ट्र को उसे पूरी तरह रद कर देना चाहिए। अगर इन समस्याओं का संतोषजनक और शीघ्र समाधान नहीं होता तो दुष्परिणाम इस क्षेत्र के बाहर भी फैल सकते हैं।

यह अति आवश्यक है कि जिनेवा सम्मेलन का शीघ्र ही पुनः आयोजन हो और उसमें पीएलओ को प्रतिनिधित्व दिया जाए। अध्यक्ष महोदय भारत सब देशों से मैत्री करना चाहता है और किसी पर प्रभुत्व स्थापित नहीं करना चाहता। भारत न तो आणविक शस्त्र शक्ति है और न बनना चाहता है। 

नई सरकार ने अपने असंदिग्ध शब्दों में इस बात की पुनर्घोषणा की है हमारे कार्य सूची का एक सर्वस्पर्शी विषय जो आगामी कई सालों और दशकों में बना रहेगा वह है मानव का भविष्य। मैं भारत की ओर से इस महासभा को आश्वासन देता हूं कि हम एक विश्व के आदर्शों की प्राप्ति और मानव के कल्याण तथा उसके गौरव के लिए त्याग और बलिदान की बेला में कभी पीछे नहीं रहेंगे। जय जगत, धन्यवाद। 

 

यूट्यूब लिंक 
https://youtu.be/euPCSc24-2s?si=i_Bf6q_OtqxgfL02

अटल जी के संबोधन का अँग्रेजी में अनुवादित पीडीएफ़
https://bharatdarshan.co.nz/pdfs/atalji-4-10-1977.pdf

 
 

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