रहीम जयंती

Raheem

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रहीम अरबी, तुर्की, फ़ारसी, संस्कृत और हिन्दी के विद्वान थे। रहीम अकबर के नवरत्नों में से एक थे। इनका पूरा नाम अब्दुर्रहीम ख़ानख़ाना था और इनका जन्म 17 दिसम्बर 1556 को हुआ था। ये अकबर के अभिभावक बैरम ख़ाँ के पुत्र थे। रहीम जब पैदा हुए तो बैरम खान की आयु 60 वर्ष हो चुकी थी। जनश्रुति है कि रहीम का नामकरण अकबर ने ही किया था। इन्हें ज्योतिष का भी ज्ञान था।

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(1)
एकै साधे सब सधै, सब साधे सब जाय।
रहिमन मूलहिं सींचिबो, फूलै फलै अगाय॥

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(2)
देनहार कोउ और है, भेजत सो दिन रैन।
लोग भरम हम पै धरैं, याते नीचे नैन॥

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(3)
अब रहीम मुसकिल परी, गाढ़े दोऊ काम।
सांचे से तो जग नहीं, झूठे मिलैं न राम॥

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(4)
गरज आपनी आप सों रहिमन कहीं न जाया।
जैसे कुल की कुल वधू पर घर जात लजाया॥

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(5)
छमा बड़न को चाहिये, छोटन को उत्पात।
कह 'रहीम' हरि का घट्यौ, जो भृगु मारी लात॥

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(6)
तरुवर फल नहिं खात है, सरवर पियहि न पान।
कहि रहीम परकाज हित, संपति सँचहि सुजान॥

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(7)
खीरा सिर ते काटिए, मलियत लोन लगाय।
रहिमन करुए मुखन को, चहियत इहै सजाय॥

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(8)
जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करि सकत कुसंग।
चन्दन विष व्यापत नहीं, लपटे रहत भुजंग॥

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(9)
जे गरीब सों हित करै, धनि रहीम वे लोग।
कहा सुदामा बापुरो, कृष्ण मिताई जोग॥

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(10)
जो बड़ेन को लघु कहे, नहिं रहीम घटि जांहि।
गिरिधर मुरलीधर कहे, कछु दुख मानत नांहि॥

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रहीम का परिचय व उनके और दोहे पढ़िए।

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