जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।
पंडित बालकृष्ण शर्मा | 8 दिसम्बर
 
 

हिन्दी साहित्य में प्रगतिशील लेखन के अग्रणी कवि पंडित बालकृष्ण शर्मा "नवीन" का जन्म 8 दिसम्बर 1897 को ग्वालियर राज्य के भयाना गांव में हुआ था।


"कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये,

एक हिलोर इधर से आये, एक हिलोर उधर से आये,
प्राणों के लाले पड़ जायें, त्राहि-त्राहि स्वर नभ में छाये,

नाश और सत्यानाशों का, धुआँधार जग में छा जाये,
बरसे आग, जलद जल जाये, भस्मसात् भूधर हो जायें,

पाप-पुण्य सद्-सद् भावों की धूल उड़ उठे दायें-बायें,
नभ का वक्ष-स्थल फट जाये, तारे टूक-टूक हो जायें,

कवि, कुछ ऐसी तान सुनाओ, जिससे उथल-पुथल मच जाये"


अन्य रचना देखिये -

"लपक चाटते जूठे पत्ते जिस दिन देखा मैंने नर को,
उस दिन सोचा क्यों न लगा दूँ, आग आज इस दुनिया भर को
फिर यह सोचा क्यों न टेंटुआ घोटा जाए स्वयं जगपति का
जिसने अपने ही स्वरूप को रूप दिया इस घृणित विकृति का।"

कवि का संकल्प देखें -

"रैन बसेरा नहीं मिले यदि, तो पथ में पड़ रहना,
बिना वस्त्र, यदि ठण्ड लगे तो योंहीं यार अकड़ रहना।
सुबह देखकर लोग कहेंगे : लो, यह तो था वह यात्री।
पर, जीते जी कातर होकर, तुम मत दीन वचन कहना।"

 
 
Posted By VIMAL KUMAR MEENA   on  Sunday, 08-12-2019
JAI SHREE RAMCHANDRA JI KI
Posted By Bhavana verma    on  Thursday, 01-01-1970
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