गुरु रविदास जयंती | 16 फरवरी 2022

बचपन से ही रविदास (रैदास) साधु प्रकृति के थे और संतों की बड़ी आव-भगत करते थे। इस कारण आपके पिता रघु आपसे खिन्न थे व इनकी संत-सेवा में सब कुछ अर्पित कर देने की प्रवृत्ति से क्रुद्ध होकर इनके पिता ने इन्हें घर से बाहर कर दिया। जीवन-यापन के लिए एक पैसा भी नहीं दिया। फिर भी रविदास साधुसेवी बने रहे। रविदास अलमस्त-फक्कड़ थे। संसार के विषयों के प्रति जरा भी आसक्ति नहीं थी। अपनी गृहस्थी जूता-चप्पल बनाकर चलाते थे।

Sant Ravidas

रविदास साधु प्रकृति के होने के अतिरिक्त समाज के प्रति भी अत्यंत जागरूक रहते थे। आपने अपनी रचनाओं के माध्यम से समाज की कुरीतियों के विरूद्ध आवाज उठाई। आपकी रचनाओं की विशेषता लोक-वाणी का अद्भुत प्रयोग था, जिसका मानव धर्म और समाज पर अमिट प्रभाव पड़ता है।

संत रविदास प्रभावित भक्तों की एक लंबी श्रृंखला है। रविदास के आदर्शों और उपदेशों को मानने वाले ‘रैदास पंथी‘ कहलाते हैं। "मन चंगा तो कठौती में गंगा" आपकी यह पंक्तियां मनुष्य को बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करती है। ‘रविदास के पद', ‘नारद भक्ति सूत्र' और ‘रविदास की बानी' आपके प्रमुख संग्रह हैं।

माघ मास के प्रारंभ होते ही संत रविदास के अनुयायी रविदास के जन्मोत्सव की तैयारी में जुट जाते हैं। माघ मास की पूर्णिमा को संत रविदास जी का जन्म हुआ था।  हर वर्ष माघ पूर्णिमा को संत रविदास की जयंती मनाई जाती है।

 

आज दिवस लेऊँ बलिहारा,
मेरे घर आया प्रभु का प्यारा।

आँगन बंगला भवन भयो पावन,
प्रभुजन बैठे हरिजस गावन।

करूँ दंडवत चरण पखारूँ,
तन मन धन उन परि बारूँ।

कथा कहैं अरु अर्थ विचारैं,
आप तरैं औरन को तारैं।

कहिं रैदास मिलैं निज दास,
जनम जनम कै काँटे पांस।

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राम मैं पूजा कहा चढ़ाऊँ ।
फल अरु फूल अनूप न पाऊँ ॥टेक॥

थन तर दूध जो बछरू जुठारी ।
पुहुप भँवर जल मीन बिगारी ॥

मलयागिर बेधियो भुअंगा ।
विष अमृत दोउ एक संगा ॥

मन ही पूजा मन ही धूप ।
मन ही सेऊँ सहज सरूप ॥

पूजा अरचा न जानूँ तेरी ।
कह रैदास कवन गति मोरी ॥


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रैदास की जीवनी व रैदास के पद पढ़िए ।