प्रेमचंद का कोट | प्रेमचंद के किस्से

रचनाकार: भारत-दर्शन संकलन

 
 

प्रेमचंद सादगी से रहते थे। उनका कोट पुराना हो चुका था और फट भी गया था, लेकिन वे उसी को पहने रहते थे।

उनकी पत्नी शिवरानी देवी ने कई बार उनसे नया कोट बनवाने के लिए आग्रह किया। प्रेमचंद हर बार पैसों की कमी बताकर बात टाल देते थे। एक दिन शिवरानी देवी ने उन्हें कुछ रुपए निकालकर दिए और कहा, "बाज़ार जाकर कोट के लिए अच्छा कपड़ा ले आइए।"

प्रेमचंद ने रुपए ले लिए और कहा, "ठीक है। आज कोट का कपड़ा आ जाएगा।"

शाम को उन्हें खाली हाथ लौटा देखकर शिवरानी ने सवाल किया, "कोट का कपड़ा क्यों नहीं लाए?"

प्रेमचंद कुछ क्षणों के लिए चुप रहे, फिर बोले- "मैं कपड़ा लेने के लिए निकला ही था कि प्रेस का एक कर्मचारी आ गया। उसकी लड़की की शादी के लिए पैसों की कमी पड़ गई थी। उसने मुझे वह सब इतनी लाचारी और उदासी से बताया कि मुझसे रहा नहीं गया। मैंने कोट के रुपए उसे दे दिए। कोट तो फिर कभी बन सकता है लेकिन लड़की की शादी नहीं टल सकती थी।"

शिवरानी देवी मन मसोस कर बुदबुदाई, "वह नहीं तो तुम्हें कोई और मिल जाता। मैं पहले ही जानती थी कि तुम्हारे हाथों में पैसे देकर कोट कभी नहीं आ सकता।"

प्रेमचंद की ओर देखा तो उनके चेहरे पर संतोष की मुस्कान खिली हुई थी।

प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'

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