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शरद जोशी | Sharad Joshi | Profile & Collections
हिन्दी के सुप्रसिद्ध व्यंग्यकार शरद जोशी का जन्म 21 मई 1931 को उज्जैन, मध्यप्रदेश में हुआ था। शरद जोशी ने मध्य प्रदेश सरकार के सूचना एवं प्रकाशन विभाग में काम किया लेकिन अपने लेखन के कारण इन्होंने सरकारी नौकरी छोड़ दी और लेखन को ही पूरी तरह से अपना लिया। आपने इन्दौर में रहते हुए समाचारपत्रों और रेडियो के लिए लेखन किया। इन्दौर में ही इनकी इरफाना सिद्दकी से जानकारी हुई जिनसे इन्होंने बाद में शादी की।
आपने कुछ कहानियाँ भी लिखी लेकिन आप व्यंग्य लेखन में ही स्थापित हुए।
1951 से 1956 तक आपने नई दुनिया के लिए लगातार व्यंग्य स्तंभ लिखा।
इनकी कहानियों पर आधारित 'लापतागंज' धारावाहिक भी बनाई गई है।
व्यंग्य संग्रह : परिक्रमा, किसी बहाने, तिलिस्म, रहा किनारे बैठ, मेरी श्रेष्ठ व्यंग्य रचनाएँ, दूसरी सतह, हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे, यथासंभव, जीप पर सवार इल्लियाँ
फिल्म लेखन : क्षितिज, छोटी-सी बात, सांच को आंच नही, गोधूलि, उत्सव
धारावाहिक लेखन : ये जो है जिन्दगी, विक्रम बेताल, सिंहासन बत्तीसी, वाह जनाब, देवी जी, प्याले में तूफान, दाने अनार के, ये दुनिया गजब की
आपने नई दुनिया, कादम्बरी, ज्ञानोदय, रविवार, साप्ताहिक हिन्दुस्तान, नवभारत टाइम्स जैसी पत्र-पत्रिकाओं के लिए काफी लिखा। नवभारत टाइम्स का 'प्रतिदिन' स्तंभ काफी लोकप्रिय रहा और यह लगातार सात साल तक चला।
1990 में आपको पद्मश्री सम्मान प्रदान किया गया। मध्यप्रदेश सरकार ने आपके नाम पर शरद जोशी सम्मान आरंभ किया है।
5 सितम्बर 1991 को मुंबई में उनका निधन हो गया।
शरद जोशी | Sharad Joshi's Collection
Total Records: 10
चाचा का ट्रक और हिंदी साहित्य
अभी-अभी एक ट्रक के नामकरण समारोह से लौटा हूं। मेरे एक रिश्तेदार ने जिनका हमारे घर पर काफी दबदबा है, कुछ दिन हुए एक ट्रक खरीदा है। उसका नाम रखने के लिए मुझे बुलाया था। एक लड़का, जो अपने आपको बहुत बड़ा आर्टिस्ट मानता था, जिसका पैंट छोटा था, मगर बाल काफी लंबे थे, रंग और ब्रश लिए पहले से वहां बैठा था कि जो नाम निकले वह ट्रक पर लिख दे। मैं समय पर पहुंच गया, इसके लिए रिश्तेदार, जिनको मैं चाचाजी कहता हूँ, प्रसन्न थे। उनका कहना था कि यदि नौ बजे बुलाया कलाकार बारह बजे पहुंचे तो उसे समय पर मानो।
अतिथि! तुम कब जाओगे
तुम्हारे आने के चौथे दिन, बार-बार यह प्रश्न मेरे मन में उमड़ रहा है, तुम कब जाओगे अतिथि! तुम कब घर से निकलोगे मेरे मेहमान!
चिड़िया | कविता
'च' ने चिड़िया पर कविता लिखी। उसे देख 'छ' और 'ज' ने चिड़िया पर कविता लिखी। तब त, थ, द, ध, न, ने फिर प, फ, ब, भ और म, ने 'य' ने, 'र' ने, 'ल' ने इस तरह युवा कविता की बारहखड़ी के सारे सदस्यों ने चिड़िया पर कविता लिखी।
हम भ्रष्टन के भ्रष्ट हमारे
देश के आर्थिक नन्दन कानन में कैसी क्यारियाँ पनपी-सँवरी हैं भ्रष्टाचार की, दिन-दूनी रात चौगुनी। कितनी डाल कितने पत्ते, कितने फूल और लुक छिपकर आती कैसी मदमाती सुगन्ध। यह मिट्टी बड़ी उर्वरा है, शस्य श्यामल, काले करमों के लिए। दफ्तर दफ्तर नर्सरियाँ हैं और बड़े बाग़ जिनके निगहबान बाबू, सुपरिनटेंडेड डायरेक्टर। सचिव, मन्त्री। जिम्मेदार पदों पर बैठे जिम्मेदार लोग क्या कहने, आई.ए.एस., एम.ए. विदेश रिटर्न आज़ादी के आन्दोलन में जेल जाने वाले, चरखे के कतैया, गाँधीजी के चेले, बयालीस के जुलूस वीर, मुल्क का झंडा अपने हाथ से ऊपर चढ़ाने वाले, जनता के अपने, भारत माँ के लाल, काल अंग्रेजन के, कैसा खा रहे हैं, रिश्वत गप-गप ! ठाठ हो गये सुसरी आज़ादी मिलने के बाद। खूब फूटा है पौधा सारे देश में, पनप रहा केसर क्यारियों से कन्याकुमारी तक, राजधानियों में, ज़िला दफ्तर, तहसील, बी.डी.ओ., पटवारी के घर तक, खूब मिलता है काले पैसे का कल्पवृक्ष पी.डब्ल्यू डी., आर टी. ओ. चुंगी नाके बीज़ गोदाम से मुंसीपाल्टी तक। सब जगह अपनी-अपनी किस्मत के टेंडर खुलते हैं, रुपया बँटता है ऊपर से नीचे, आजू बाजू। मनुष्य- मनुष्य के काम आ रहा है, खा रहे हैं तो काम भी तो बना रहे हैं। कैसा नियमित मिलन है, बिलैती खुलती है, कलैजी की प्लेट मँगवाई जाती है। साला कौन कहता है राष्ट्र में एकता नहीं, सभी जुटे हैं, खा रहे हैं, कुतर-कुतर पंचवर्षीय योजना, विदेश से उधार आया रुपया, प्रोजेक्टों के सूखे पाइपों पर ‘फाइव-फाइव-फाइव' पीते बैठे हँस रहे हैं ठेकेदार, इंजीनियर, मन्त्री के दौरे के लंच-डिनर का मेनू बना रहे विशेषज्ञ। स्वास्थ्य मन्त्री की बेटी के ब्याह में टेलिविजन बगल में दाब कर लाया है दवाई कम्पनी का अदना स्थानीय एजेंट। खूब मलाई कट रही है। हर सब-इन्स्पेक्टर ने प्लॉट कटवा लिया कॉलोनी में। टॉउन प्लानिंग वालों की मुट्ठी गर्म करने से कृषि की सस्ती ज़मीन डेवलपमेंट में चली जाती है। देश का विकास हो रहा है भाई। आदमी चाँद पर पहुँच रहा है। हम शनिवार की रात टॉप फाइव स्टार होटल में नहीं पहुँच सकते, लानत है ऐसे मुल्क पर !
जिसके हम मामा हैं
एक सज्जन बनारस पहुँचे। स्टेशन पर उतरे ही थे कि एक लड़का दौड़ता आता।‘‘मामाजी ! मामाजी !''-लड़के ने लपक कर चरण छूए।
चौथा बंदर - शरद जोशी
एक बार कुछ पत्रकार और फोटोग्राफर गांधी जी के आश्रम में पहुंचे। वहां उन्होंने देखा कि गांधी जी के तीन बंदर हैं। एक आंख बंद किए है, दूसरा कान बंद किए है, तीसरा मुंह बंद किए है। एक बुराई नहीं देखता, दूसरा बुराई नहीं सुनता और तीसरा बुराई नहीं बोलता। पत्रकारों को स्टोरी मिली, फोटोग्राफरों ने तस्वीरें लीं और आश्रम से चले गए।
सरकार का जादू : जादू की सरकार
जादूगर मंच पर आकर खड़ा हो गया। वह एयर इंडिया के राजा की तरह झुका और बोला, ''देवियो और सज्जनो, हम जो प्रोग्राम आपके सामने पेश करने जा रहे हैं, वह इस मुलुक का, इस देश का प्रोग्राम है जो बरसों से चल रहा है और मशहूर है। आप इसे देखिए और हमें अपना आशीर्वाद दीजिए।" इतना कहकर जादूगर ने झटके से सिर उठाया और जोरदार पाश्र्व संगीत बजने लगा। ''फर्स्ट आयटम ऑफ दि प्रोग्राम : अप्लीकेशन टू द गवर्नमेंट, सरकार कू दरखास्त!" जादूगर ने कहा और बायां हाथ विंग्स की तरफ उठाया कि दो लड़कियां वहां से निकलीं। उनके हाथों में स्टूल और बंद डिब्बे थे। एक डिब्बे पर लिखा था आवक और दूसरे पर जावक। लड़कियों ने जादूगर के दोनों ओर स्टूल रख दिए, उन पर डिब्बे जमा दिए और पीछे खड़ी हो उस आश्चर्यमिश्रित मुस्कराहट से देखने लगीं जैसे जादूगर की सहायिकाएं देखती हैं। जादूगर ने सबको दिखाया कि डिब्बे खाली हैं। ''सरकार कू दरखास्त! आवक का डिब्बा में दरखास डालेंगा तो जावक का डिब्बा में जवाब मिलेंगा। मिलेंगा तो मिलेंगा आदरवाइज नइ भी मिलेंगा। अप्लाय अप्लाय नो रिप्लाय।" जादूगर ने कहा और तभी विंग्स से एक व्यक्ति अनेक आवेदन-पत्र लेकर आया और उसने जादूगर के हाथों में थमा दिए। जादूगर ने दर्शकों की तरफ देखा और कहा, ''आरे आज बहुत सारा दरखाश है। हाम इसकू गोवरमैंट को भेजता है, ''इतना कहकर उसने आवक के डिब्बे में एक-एक कर आवेदन पत्र डालने शुरू कर दिए। फिर डिब्बे को बंद कर दिया। यह सारा काम उसने पाश्र्व संगीत की एक लहर के साथ किया। उसने डिब्बे को बंद किया और जादू की छड़ी घुमाई। फिर आवेदन पत्र लाने वाले से बोला, ''तुम इदर काय कू खड़ा है?" ''अप्लीकेशन का जवाब मांगता है सर!" ''ओ, आवक में दरखास डालेंगा तो जावक में जवाब आएंगा। इधर देखो।" वह व्यक्ति जावक का डिब्बा देखता है। वह भी खाली है।