भाषा की समस्या का समाधान सांप्रदायिक दृष्टि से करना गलत है। - लक्ष्मीनारायण 'सुधांशु'।

कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar' | Profile & Collections

कन्हैयालाल मिश्र 'प्रभाकर' का जन्म 29 मई, 1906 को सहारनपुर ज़िले के देवबन्द गांव में हुआ था। कन्हैयालाल का मुख्य कार्यक्षेत्र पत्रकारिता था।

कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर हिन्दी के जाने-माने निबंधकार हैं जिन्होंने राजनैतिक और सामाजिक जीवन से संबंध रखने वाले अनेक निबंध लिखे हैं। इन्होंने पराधीनता के समय स्वाधीनता आंदोलन में बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया, जिसके कारण कई बार जेल भी जाना पड़ा।

आपका मुख्य कार्यक्षेत्र पत्रकारिता था। वे ज्ञानोदय के संपादक भी रहे।

कन्हैयालाल मिश्र का 9 मई 1995 को निधन हो गया।

प्रमुख साहित्यिक कृतियां - जिंदगी मुसकाई, माटी हो गई सोना, दीप जले शंख बजे आदि।

[भारत-दर्शन संकलन]

कन्हैया लाल मिश्र 'प्रभाकर' | Kanhaiyalal Mishra 'Prabhakar''s Collection

Total Records: 8

नन्दा

नन्दा तीन दिन से भूखा था; पेट की ज्वाला से अधमरा!

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पहचान | लघु-कथा

'मैं अपना काम ठीक-ठाक करुंगा और उसका पूरा-पूरा फल पाऊंगा!'  यह एक ने कहा।

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जैसी करनी वैसी भरनी | बोध -कथा

एक हवेली के तीन हिस्सों में तीन परिवार रहते थे। एक तरफ कुन्दनलाल, बीच में रहमानी, दूसरी तरफ जसवन्त सिंह।

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ग़नीमत हुई | बोध -कथा

राधारमण हिंदी के यशस्वी लेखक हैं। पत्रों में उनके लेख सम्मान पाते हैं और सम्मेलनों में उनकी रचनाओं पर चर्चा चलती है। रात उनके घर चोरी हो गई। न जाने चोर कब घुसा और उनका एक ट्रंक उठा ले गया - शायद जाग हो गई और उसे बीच में ही भागना पड़ा।

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सेठजी | लघु-कथा

''महात्मा गान्धी आ रहे हैं, उनकी 'पर्स' के लिए कुछ आप भी दीजिये सेठजी!''

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आहुति | लघु-कथा

अंगार ने ऋषि की आहुतियों का घी पिया और हव्य के रस चाटे। कुछ देर बाद वह ठंडा होकर राख हो गया और कूड़े की ढेरी पर फेंक दिया गया।

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तीन दृष्टियाँ | बोधकथा

चंपू, गोकुल और वंशी एक महोत्सव में गये।

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बड़ा और छोटा | बोधकथा

विशाल वटवृक्ष ने अपनी छाया में इधर-उधर फैले, कुछ छोटे वृक्षों से अभिमान के साथ कहा--"मैं कितना विराट् हूँ और तुम कितने क्षुद्र! मैं अपनी शीतल छाया में सदा तुम्हें आश्रय देता हूँ।"

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