प्रेम जनमेजय
प्रेम जनमेजय का जन्म 18 मार्च 1949 को इलाहाबाद (उत्तर प्रदेश) में हुआ था।
व्यंग्य विधा को पूरी तरह समर्पित प्रेम जनमेजय व्यंग्य-लेखन के परंपरागत विषयों में स्वयं को सीमित करने में विश्वास नहीं करते हैं। उनका मानना है कि व्यंग्य लेखन के अनेक उपमान मैले हो चुके हैं। बहुत आवश्यक है सामाजिक एवं आर्थिक विसंगतियों को पहचानने तथा उनपर दिशायुक्त प्रहार करने की। व्यंग्य को एक गंभीर कर्म तथा सुशिक्षित मस्तिष्क के प्रयोजन की विधा मानने वाले प्रेम जनमेजय आधुनिक हिंदी व्यंग्य की तीसरी पीढ़ी के सशक्त हस्ताक्षर हैं।
व्यंग्य के प्रति गंभीर एवं सृजनात्मक चिंतन के चलते ही उन्होंनें ‘व्यंग्य यात्रा' का प्रकाशन आरंभ किया । बहुत कम समय में ही इस पत्रिका ने अपना महत्वपूर्ण स्थान बना लिया। यह इस पत्रिका के प्रकाशन का ही परिणाम है कि वर्तमान में व्यंग्य से जुड़े मुद्दों पर गंभीर चर्चाएं हो रहीं हैं और सार्थक व्यंग्य रचनाएं प्रकाशित हो रही हैं । प्रेम जनमेजय ने व्यंग्य-साहित्य में अपने योगदान के अतिरिक्त बाल-साहित्य और नवसाक्षर-लेखन में भी महत्वपूर्ण रचनात्मक भूमिका निभाई है ।
मुख्य कृतियाँ
व्यंग्य संकलन : राजधानी में गँवार, बेर्शममेव जयते, पुलिस! पुलिस!, मैं नहिं माखन खायो, आत्मा महाठगिनी, मेरी इक्यावन व्यंग्य रचनाएँ, शर्म मुझको मगर क्यों आती, डूबते सूरज का इश्क, कौन कुटिल खल कामी, ज्यों ज्यों बूड़ें श्याम रंग
आलोचना : प्रसाद के नाटकों में हास्य-व्यंग्य, हिंदी व्यंग्य का समकालीन परिदृश्य, श्रीलाल शुक्ल : विचार, विश्लेषण और जीवन
नाटक : सीता अपहरण केस
बाल साहित्य : शहद की चोरी, अगर ऐसा होता, नल्लुराम
अन्य : हुड़क, मोबाइल देवता
संपादन : व्यंग्य यात्रा (व्यंग्य पत्रिका), बींसवीं शताब्दी उत्कृष्ट साहित्य : व्यंग्य रचनाएँ, हिंदी हास्य-व्यंग्य संकलन (श्रीलाल शुक्ल के साथ सहयोगी संपादक)
सम्मान
व्यंग्यश्री सम्मान, कमला गोइन्का व्यंग्यभूषण सम्मान, संपादक रत्न सम्मान, साहित्यकार सम्मान, इंडो-रशियन लिटरेरी क्लब सम्मान, अवंतिका सहस्त्राब्दी सम्मान, हरिशंकर परसाई स्मृति पुरस्कार, प्रकाशवीर शास्त्री सम्मान, अट्टहास सम्मान
संपर्क
ई-मेल : premjanmejai@gmail.com