जब से हमने अपनी भाषा का समादर करना छोड़ा तभी से हमारा अपमान और अवनति होने लगी। - (राजा) राधिकारमण प्रसाद सिंह।

आचार्य चतुरसेन शास्त्री

आचार्य चतुरसेन का जन्म 26 अगस्त 1891 में बुलन्दशहर (उत्तर प्रदेश ) के एक छोटे से गाँव चांदौख में हुआ था। शैशवकाल के प्रथम चार वर्ष यहीं व्यतीत हुए। यह गाँव आपका पुश्तैनी निवास नहीं था, अस्थायी प्रवास था। आपका पैतृक गाँव चंदौख के निकट ‘बिबियाना' ग्राम था। आपके पिता का नाम केवलराम ठाकुर तथा माता का नाम नन्हीं देवी था। इनकी माता जी शिक्षित नहीं थी व पिता जी अल्पशिक्षित थे, लेकिन चतुरसेन की प्रतिभा के बारे में एक ज्योतिषी ने भविष्यवाणी की थी कि वे बहुमुखी प्रतिभा के साहित्यकार होंगे। आपके जन्म का नाम ‘चतुर्भुज' था।

शिक्षा: आपकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव में हुई। अक्षराभ्यास हो जाने के पश्चात् आपका परिवार बुलंदशहर के सिकंदराबाद कस्बे में आ बसा।

चतुरसेन बहुत ही भावुक, संवेदनशील और स्वाभिमानी प्रकृति के थे । दीन-दुखियों तथा रोगियों के प्रति आपके ह्रदय में असाधारण करुणा थी। आपने वैद्यकीय ज्ञान प्राप्त कर औषधालय भी खोला।

आप 1917 में डी.ए.वी कॉलेज लाहौर में आयुर्वेद के शिक्षक बन गये। कुछ समय वहाँ काम करने के बाद आप अजमेर आकर अपने ससुर के ‘कल्याण औषधालय' को संभालने लगे। शास्त्रीजी ने जीवन के संघर्ष के बीच अपना लेखन जारी रखा।

साहित्यिक कृतियाँ:  "हृदय की परख" आपका पहला उपन्यास था जो आपने अपने बम्बई प्रवास के समय लिखा। यह उपन्यास एक सत्य घटना पर आधारित था और उस समय चर्चा में रहा। यह उपन्यास बम्बई के उर्दू पत्र ‘बीसवीं सदी' में धारावाहिक के रूप में इसका अनुवाद ‘उर्दू' में प्रकाशित होता रहा। इसके पश्चात 1921 में ‘सत्याग्रह और असहयोग' नामक पुस्तक गाँधी पुस्तक हिन्दी भंडार, बम्बई से प्रकाशित हुई थी। यह पुस्तक काफी चर्चित रही। इस पुस्तक के भाव और भाषा पर मुग्ध होकर गणेश शंकर विद्यार्थी ने शास्त्री जी को जेल से पत्र लिखकर इस पुस्तक की प्रशंसा की थी। उन्होंने लिखा था - "मैं इस पुस्तक को असहयोग और राजनीति की गीता मानता हूँ और उसका पाठ गीता की भाँति करता हूँ।"

शास्त्रीजी ने चार सौ से अधिक कहानियाँ, लगभग 30 उपन्यास तथा अनेक नाटक लिखे। इसके अतिरिक्त गद्य में इतिहास, राजनीति, समाज, धर्म, स्वास्थ्य-चिकित्सा, संस्कृत, शिक्षा, पाकशास्त्र इत्यादि विभिन्न विषयों पर लेखन किया। आपने छोटे-बड़े लगभग 175 ग्रन्थों की रचना की।

शास्त्री जी की कहानियाँ उत्कृष्ठ थीं। उनकी एक कहानी 'खूनी' के प्रताप में प्रकाशित होने पर प्रताप के संपादक पं॰ माखनलाल चतुर्वेदी ने लिखा था, "खूनी को छाप कर प्रताप निहाल हो गया।"

आपकी गद्यकाव्य रचनाएँ ‘प्रताप' में प्रकाशित होती रहीं जिनमें ‘चित्तौड़ के किले में', ‘स्वदेश' व ‘अनूप शहर के घाट पर' इत्यादि सम्मिलित हैं। ‘अन्तस्तल' शास्त्री जी का प्रसिद्ध गद्यकाव्य संग्रह है। यह हिन्दी में गद्य काव्य की प्रथम प्रकाशित पुस्तक थी।

आपके उपन्यासों में ‘वैशाली की नगरवधू', ‘सोमनाथ', ‘वय रक्षाम:', ‘सोना और खून', ‘आलमगीर' इत्यादि प्रसिद्ध है। ‘वैशाली की नगरवधू' आपकी श्रेष्ठ कृति है।

निधन: इस महान साहित्यकार, आयुर्वेदाचार्य का 2 फरवरी, 1960 को निधन हो गया।

- रोहित कुमार ‘हैप्पी' 

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खूनी

उसका नाम मत पूछिये। आज दस वर्ष से उस नाम को हृदय से और उस सूरत को आँखों से दूर करने को पागल हुआ फिरता हूँ। पर वह नाम और वह सूरत सदा मेरे साथ है। मैं डरता हूँ, वह निडर है--मैं रोता हूँ--वह हँसता है--मैं मर जाऊँगा--वह अमर है।

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