अकबर से लेकर औरंगजेब तक मुगलों ने जिस देशभाषा का स्वागत किया वह ब्रजभाषा थी, न कि उर्दू। -रामचंद्र शुक्ल

आनन्द विश्वास | Anand Vishvas | Profile & Collections

नामः आनन्द विश्वास (Anand Vishvas)

जन्म तिथिः 01, जुलाई 1949, शिकोहाबाद (उत्तर प्रदेश)

अध्यापनः 30 वर्ष, अहमदाबाद (गुजरात)

और अबः स्वतंत्र लेखन (नई दिल्ली)

लेखन कब सेः सन् 1970 से

मूल विधाः बाल-साहित्य (कविता, कहानी एवं बाल उपन्यास)

प्रकाशित कृतियाँ-

1. “देवम” (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली।
2. “मिटने वाली रात नहीं” (कविता संकलन) (वर्ष-2012) डायमंड बुक्स दिल्ली।  
3. “पर-कटी पाखी” (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2014) डायमंड बुक्स दिल्ली और pratilipi.com पर सम्पूर्ण बाल-उपन्यास पठनीय।
4. “बहादुर बेटी” (बाल-उपन्यास) (वर्ष-2015) उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ और pratilipi.com पर सम्पूर्ण बाल-उपन्यास पठनीय।
5. “मेरे पापा सबसे अच्छे” (बाल-कविताएँ) (वर्ष-2016) उत्कर्ष प्रकाशन, मेरठ और pratilipi.com पर सम्पूर्ण बाल-कविताएँ पठनीय।
6. “बुरा न बोलो बोल रे” (51 बाल-कविताएँ) (वर्ष-2022) देवप्रभा प्रकाशन, गाजियाबाद।

प्रबंधन- फेसबुक पर बाल साहित्य के बृहत् समूह “बाल-साहित्य” एवं “बाल-जगत” समूह का सफल संचालन।

ब्लाग्स-

https://anandvishvas.blogspot.com
https://anandvishwas.blogspot.com

“समाज की बौनी मान्यताओं, जहरीले अंधविश्वास और आज की वेदना एवं मुश्किलों के बोझ से संघर्ष-रत जीवन के प्रति विद्रोही स्वर।”

सम्पर्क का पता-

आनन्द विश्वास
सी/85  ईस्ट एण्ड एपार्टमेन्ट्स,
न्यू अशोक नगर मेट्रो स्टेशन के पास,
मयूर विहार फेज़-1
नई दिल्ली-110096

मो.न.- 7042859040, 9898529244.
ई-मेलः anandvishvas@gmail.com

आनन्द विश्वास | Anand Vishvas's Collection

Total Records: 30

गरमागरम थपेड़े लू के

गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है,इतनी गरमी कभी न देखी, ऐसा पहली बार हुआ है।नींबू - पानी, ठंडा - बंडा,ठंडी बोतल डरी - डरी है।चारों ओर बबंडर उठते,आँधी चलती धूल भरी है।नहीं भाड़ में सीरा भैया, भट्ठी-सा संसार हुआ है,गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।आते - जाते आतंकी से,सब अपना मुँह ढ़ाँप रहे हैं।बिजली आती-जाती रहती,एसी, कूलर काँप रहे हैं।शिमला नैनीताल चलें अब,मन में यही विचार हुआ है,गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।अभी सुना भू-कम्प हुआ है,और सुनामी सागर तल पर।दूर-दूर तक दिखे न राहत,आफत की आहट है भू पर।बन्द द्वार कर घर में बैठो, जीना ही दुश्वार हुआ है,गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।बादल फटा, बहे घर द्वारे,नगर-नगर में पानी-पानी।सृष्टि-सन्तुलन अस्त व्यस्त है,ये सब कुछ अपनी नादानी।मानव-मन पागल है कितना,समझाना बेकार हुआ है,गरमागरम थपेड़े लू के, पारा सौ के पार हुआ है।

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बच्चो, चलो चलाएं चरखा

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आनन्द विश्वास के हाइकु

1.मन की बातसोचो, समझो औरमनन करो।

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आई हेट यू, पापा!

भास्कर के घर से कुछ ही दूरी पर स्थित है सन्त श्री शिवानन्द जी का आश्रम। दिव्य अलौकिक शक्ति का धाम। शान्त, सुन्दर और रमणीय स्थल। जहाँ ध्यान, योग और ज्ञान की अविरल गंगा बहती रहती है। दिन-रात यहाँ वेद-मंत्र और ऋचाओं का उद्घोष वातावरण को पावनता प्रदान करता रहता है और नदी का किनारा जिसकी शोभा को और भी अधिक रमणीय बना देता है।

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छूमन्तर मैं कहूँ...

छूमन्तर मैं कहूँ और फिर,जो चाहूँ बन जाऊँ।काश, कभी पाशा अंकल सा,जादू मैं कर पाऊँ।

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बेटी-युग

सतयुग, त्रेता, द्वापर बीता, बीता कलयुग कब का,बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।बेटी-युग में खुशी-खुशी है,पर मेहनत के साथ बसी है।शुद्ध-कर्म निष्ठा का संगम,सबके मन में दिव्य हँसी है।नई सोच है, नई चेतना, बदला जीवन सबका,बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।इस युग में ना परदा बुरका,ना तलाक, ना गर्भ-परिक्षण।बेटा बेटी, सब जन्मेंगे,सबका होगा पूरा रक्षण।बेटी की किलकारी सुनने, लालायित मन सबका।बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।बेटी भार नहीं इस युग में,बेटी है आधी आबादी।बेटा है कुल का दीपक, तो,बेटी है दो कुल की थाती।बेटी तो शक्ति-स्वरूपा है, दिव्य-रूप है रब का।बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।चौके चूल्हे वाली बेटी,बेटी-युग में कहीं न होगी।चाँद सितारों से आगे जा,मंगल पर मंगलमय होगी।प्रगति-पंथ पर दौड़ रहा है, प्राणी हर मज़हब का।बेटी-युग के नए दौर में, हर्षाया हर तबका।

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मामू की शादी में

मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।नाचे-कूदे,गाने गाए, जमकर मौज़ मनाई।आगे-आगे बैण्ड बजे थे,पीछे बाजे ताशे।घोड़ी पर मामू बैठे थे,हम थे उनके आगे।तरह-तरह की फिल्मी धुन थीं और बजी शहनाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।नाना नाचे, नानी नाचीं,नाचीं चाची ताई।दादा-दादी ने फिर जमकर,डिस्को डांस दिखाई।आतिशबाजी बड़े गज़ब की, सबके मन को भाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।दरवाजे पर धूम-धड़ाका,नाचे सभी बराती।स्वागत करने सभी वहाँ थे,रिश्तेदार घराती।मामी जी ने मामा जी को, वर-माला पहनाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।खाने के तो, क्या थे कहने,कुछ मत पूछो भाया।काजू किसमिश मेवे वाला,हलवा हमने खाया।कहीं चाट थी दिल्ली वाली, और कहीं ठंडाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।काजू-पूरी, दाल मखनियाँ,और नान तन्दूरी।छोले और भटूरे ने तो,कर दी टंकी पूरी।दही-बड़े की डिश मामी ने, जबरन हमें खिलाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।और रात को फेरे-पूजा,छन की बारी आई।मामूजी भी बड़े चतुर थे,छन की झड़ी लगाई।मौका पाकर साली जी ने, जूती लई चुराई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।भोर हुआ तब धीरे-धीरे,समय विदा का आया।दरवाजे पर कार खड़ी थी,सबका मन भर आया।सबकी आँखे भर आईं जब, होने लगी विदाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।यूँ तो मुझको बड़ी खुशी थी,फिर भी रोना आया।रोना और बिलखना सबका,मैं तो सह ना पाया।सारी खुशियाँ छूमंतर थीं,सुनकर शब्द विदाई।मामू की शादी में हमने, खूब मिठाई खाई।

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जब सुनोगे गीत मेरे...

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।दर्द दर-दर का पिये मैं, कब तलक घुलता रहूँ।अग्नि अंतस् में छुपाये, कब तलक जलता रहूँ।वेदना का नीर पीकर, अश्रु आँखों से बहा।हिम-शिखर की रीति-सा मैं, कब तलक गलता रहूँ।तुम समझते पल रहा हूँ, मैं मगर,दर्द का पलना बना मैं जा रहा हूँ।

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मेरे देश की माटी सोना | गीत

मेरे देश की माटी सोना, सोने का कोई काम ना,जागो भैया भारतवासी, मेरी है ये कामना।दिन तो दिन है रातों को भी थोड़ा-थोड़ा जागना,माता के आँचल पर भैया, आने पावे आँच ना।

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रो उठोगे मीत मेरे

दर्द की उपमा बना मैं जा रहा हूँ,पीर की प्रतिमा बना मैं जा रहा हूँ।

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एक आने के दो समोसे | कहानी

बात उन दिनों की है जब एक आने के दो समोसे आते थे और एक रुपये का सोलह सेर गुड़। अठन्नी-चवन्नी का जमाना था तब। प्राइमरी स्कूल के बच्चे पेन-पेन्सिल से कागज पर नही, बल्कि नैज़े या सरकण्डे की बनी कलम से खड़िया की सफेद स्याही से, लकड़ी के तख्ते की बनी हुई पट्टी पर लिखा करते थे।

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सजनवा के गाँव चले

सूरज उगे या शाम ढले,मेरे पाँव सजनवा के गाँव चले।

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चिड़िया फुर्र

अभी दो चार दिनों से देवम के घर के बरामदे में चिड़ियों की आवाजाही कुछ ज्यादा ही हो गई थी। चिड़ियाँ तिनके ले कर आती, उन्हें ऊपर रखतीं और फिर चली जातीं दुबारा, तिनके लेने के लिये।

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पीछे मुड़ कर कभी न देखो

पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना,उज्ज्वल ‘कल’ है तुम्हें बनाना, वर्तमान ना व्यर्थ गँवाना।संधर्ष आज तुमको करना है,मेहनत में तुमको खपना है।दिन और रात तुम्हारे अपने,कठिन परिश्रम में तपना है।फौलादी आशाऐं लेकर, तुम लक्ष्य प्राप्ति करते जाना,पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।इक-इक पल है बहुत कीमती,गया समय वापस ना आता।रहते समय न जागे तुम तो,जीवन भर रोना रह जाता।सत्यवचन सबको खलता है मुश्किल है सच को सुन पानापीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।बीहड़ बीयावान डगर पर,कदम-कदम पर शूल मिलेंगे।इस छलिया माया नगरी में,अपने ही प्रतिकूल मिलेंगे।गैरों की तो बात छोड़ दो, अपनों से मुश्किल बच पाना,पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।कैसे ये होते हैं अपने,जो सपनों को तोड़ा करते हैं।मुश्किल में हों आप अगर तो,झटपट मुँह मोड़ा करते हैं।एक ईश जो साथ तुम्हारे, उसके तुम हो कर रह जाना,पीछे मुड़ कर कभी न देखो, आगे ही तुम बढ़ते जाना।

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मैंने जाने गीत बिरह के

मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है,कदम-कदम पर मिली विवशता, साँसों में विश्वास नहीं है।छल से छला गया है जीवन,आजीवन का था समझौता।लहरों ने पतवार छीन ली,नैया जाती खाती गोता।किस सागर जा करूँ याचना, अब अधरों पर प्यास नहीं है,मैंने जाने गीत बिरह के, मधुमासों की आस नहीं है।

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नानी वाली कथा-कहानी

नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।बेटी-युग में बेटा-बेटी,सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे।फौलादी ले नेक इरादे,खुद अपना इतिहास गढ़ेंगे।देश पढ़ेगा, देश बढ़ेगा, दौड़ेगी अब, तरुण जवानी।नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।बेटा शिक्षित, आधी शिक्षा,दोनों शिक्षित पूरी शिक्षा।हमने सोचा,मनन करो तुम,सोचो समझो करो समीक्षा।सारा जग शिक्षामय करना,हमने सोचा मन में ठानी।नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।अब कोई ना अनपढ़ होगा,सबके हाथों पुस्तक होगी।ज्ञान-गंग की पावन धारा,सबके आँगन तक पहुँचेगी।पुस्तक और कलम की शक्ति,जग जाहिर जानी पहचानी।नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुईं पुरानी।बेटी-युग सम्मान-पर्व है,पुर्ण्य-पर्व है, ज्ञान-पर्व है।सब सबका सम्मान करे तो,जन-जन का उत्थान-पर्व है।सोने की चिड़िया तब बोले,बेटी-युग की हवा सुहानी।नानी वाली कथा-कहानी, अब के जग में हुई पुरानी।बेटी-युग के नए दौर की, आओ लिख लें नई कहानी।- आनन्द विश्वास

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सूरज दादा कहाँ गए तुम

सूरज दादा कहाँ गए तुम, काहे ईद का चाँद भए तुम।

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बगीचा

मेरे घर में बना बगीचा,हरी घास ज्यों बिछा गलीचा।

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चलो, करें जंगल में मंगल

चलो, करें जंगल में मंगल,संग प्रकृति के जी लें दो पल।बतियाएं कुछ अपने मन की,और सुनें उनके जीवन की।

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जलाओ दीप जी भर कर

जलाओ दीप जी भर कर,दिवाली आज आई है।नया उत्साह लाई है,नया विश्वास लाई है।

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आया मधुऋतु का त्योहार

खेत-खेत में सरसों झूमे, सर-सर बहे बयार,मस्त पवन के संग-संग आया मधुऋतु का त्योहार।

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मंकी और डंकी

डंकी के ऊपर चढ़ बैठा,जम्प लगाकर मंकी, लाल।ढेंचूँ - ढेंचूँ करता डंकी,उसका हाल हुआ बेहाल।

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अगर सीखना कुछ चाहो तो...

अगर सीखना कुछ चाहो तो,हर चीज तुम्हें शिक्षा देगी।शर्त यही है कुछ पाने की,जब मन में इच्छा होगी।

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कुछ हाइकु

मन की बातसोचो, समझो औरमनन करो।

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फूल नहीं तोड़ेंगे हम

14 नवम्बर, बाल-दिवस, बच्चों के प्यारे चाचा नेहरू जी का जन्म-दिवस, देवम के स्कूल में बड़ी धूमधाम के साथ मनाया जाता है। सभी छात्र बड़े उत्साह और उमंग के साथ इस दिवस को मनाते हैं।

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मेरे पापा सबसे अच्छे

मेरे पापा सबसे अच्छे,मेरे संग बन जाते बच्चे।झटपट वे घोड़ा बन जाते,और पीठ पर मुझे बिठाते।

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नभ में उड़ने की है मन में

नभ में उड़ने की है मन में,उड़कर पहुँचूँ नील गगन में। काश, हमारे दो पर होते, हम बादल से ऊपर होते। तारों के संग यारी होती, चन्दा के संग सोते होते।

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प्रकृति विनाशक आखिर क्यों है?

बिस्तर गोल हुआ सर्दी का,अब गर्मी की बारी आई।आसमान से आग बरसती,त्राहिमाम् दुनियाँ चिल्लाई।

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चलो कहीं पर घूमा जाए | गीत

चलो कहीं पर घूमा जाए,थोड़ा मन हल्का हो जाए।सबके, अपने-अपने ग़म हैं,किस ग़म को कम आँका जाए।

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मेरे जन्म दिवस पर मुझको

मेरे जन्म दिवस पर मुझको, पापा ने उपहार दिया है।सुन्दर पुस्तक मुझको दी है, पढ़ने वाला प्यार दिया है।इस पुस्तक में इक बालक ने,आतंकी को मार गिराया।बेटा-बेटी सभी पढ़ेंगे,का सुन्दर अभियान चलाया।सभी पढ़ेंगे, सभी बढ़ेंगे, नारे को साकार किया है।मेरे जन्म दिवस पर मुझको, पापा ने उपहार दिया है॥

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