पथ की बाधाओं के आगे घुटने टेक दिएअभी तो आधा पथ चले! तुम्हें नाव से कहीं अधिक था बाहों पर विश्वास, क्यों जल के बुलबुले देखकर गति हो गई उदास, ज्वार मिलेंगे बड़े भंयकर कुछ आगे चलकर--अभी तो तट के तले तले! सीमाओं से बाँध नहीं पाता कोई मन को, सभी दिशाओं में मुड़ना पड़ता है जीवन को, हो सकता है रेखाओं पर...
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