कबीरदास साहित्य Hindi Literature Collections of Kabir

कुल रचनाएँ: 23

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कबीर दोहे -2

(21)लूट सके तो लूट ले, राम नाम की लूट ।पाछे फिरे पछताओगे, प्राण जाहिं जब छूट ॥
(22)जहाँ दया तहाँ धर्म है, जहाँ लोभ तहाँ पाप ।जहाँ क्रोध तहाँ पाप है, जहाँ क्षमा तहाँ आप ॥
 
(23)कबीरा सोया क्या करे, उठि न भजे भगवान ।जम जब घर ले जायेंगे, पड़ी रहेगी म्यान ॥
(24)जाति न पूछो साधु की, पूछि लीजि...

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गुरुदेव | कबीर की साखियां

सतगुरु सवाँ न को सगा, सोधी सईं न दाति ।हरिजी सवाँ न को हितू, हरिजन सईं न जाति ।।१।।
सद्गुरु के समान कोई सगा नहीं है। शुद्धि के समान कोई दान नहीं है। इस शुद्धि के समान दूसरा कोई दान नहीं हो सकता। हरि के समान कोई हितकारी नहीं है, हरि सेवक के समान कोई जाति नहीं है।
बलिहारी गुरु आपकी, घरी घरी सौ बा...

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सत्य की महिमा - कबीर की वाणी

साँच बराबर तप नहीं, झूँठ बराबर पाप।जाके हिरदे साँच है, ताके हिरदे आप॥
साँच बिना सुमिरन नहीं, भय बिन भक्ति न होय।पारस में पड़दा रहै, कंचन किहि विधि होय॥
 
साँचे को साँचा मिलै, अधिका बढ़े सनेह॥झूँठे को साँचा मिलै, तब ही टूटे नेह॥
सहब के दरबार में साँचे को सिर पाव।झूठ तमाचा खायेगा, रंक्क हो...

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उपदेश : कबीर के दोहे

कबीर आप ठगाइये, और न ठगिये कोय। आप ठगे सुख ऊपजै, और ठगे दुख होय॥
अति का भला न बोलना, अति की भली न चूप। अति का भला न बरसना, अति की भली न धूप॥
जो तोकौ काँटा बुवै, ताहि बोवे फूल। तोहि फूल को फूल है, वा को है तिरसूल॥
दुर्बल को न सताइये, जा की मोटी हाय। बिना जीव की- स्वास से, लोह भसम ह्वै जाय॥
ऐसी...

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प्रेम पर दोहे

प्रेम न बाड़ी ऊपजै, प्रेम न हाट बिकाय। राजा-परजा जेहि रुचै, सीस देइ लै जाय॥
प्रेम-प्रेम सब कोइ कहै, प्रेम न चीन्हे कोय। आठ पहर भीना रहे, प्रेम कहावै सोय॥
प्रीतम को पतियाँ लिखूँ, जो कहु होय विदेस । तन में, मन में, नैन में, ताको कहा सँदेश॥
कबिरा प्याला प्रेम का, अन्तर लिया लगाय । रोम-रोम मे रमि ...

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संत कबीरदास के दोहे 

संत कबीर के दोहे 
सब धरती कागद करूँ, लेखनि सब बनराय। सात समुद की मसि करूँ, गुरु गुन लिखा न जाय॥ 
माला तो कर में फिरे, जीभ फिरे मुख माहिं। मनुवाँ तो दहुँ दिसि फिरै, यह तो सुमिरन नाहिं॥ 
एक सबद सुखरास है, एक सबद दुखरास। एक सबद बंधन कटै, एक सबद गल फाँस॥ 
कुसल क...

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कबीर के दोहे | Kabir's Couplets

कबीर के दोहे सर्वाधिक प्रसिद्ध व लोकप्रिय हैं। हम कबीर के अधिक से अधिक दोहों को संकलित करने हेतु प्रयासरत हैं।
(1)चाह मिटी, चिंता मिटी मनवा बेपरवाह।जिसको कुछ नहीं चाहिए वह शहनशाह॥
(2)माटी कहे कुम्हार से, तु क्या रौंदे मोय।एक दिन ऐसा आएगा, मैं रौंदूगी तोय॥
(3)
माला फेरत जुग भया, फिरा न मन का फ...

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कबीर वाणी

माला फेरत जुग गया फिरा ना मन का फेरकर का मनका छोड़ दे मन का मन का फेरमन का मनका फेर ध्रुव ने फेरी मालाधरे चतुरभुज रूप मिला हरि मुरली वालाकहते दास कबीर माला प्रलाद ने फेरीधर नरसिंह का रूप बचाया अपना चेरो
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आया है किस काम को किया कौन सा कामभूल गए भगवान को कमा रहे धनधामकमा रहे धनधाम रोज उठ करत लबा...

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कबीर की हिंदी ग़ज़ल

क्या कबीर हिंदी के पहले ग़ज़लकार थे? यदि कबीर की निम्न रचना को देखें तो कबीर ने निसंदेह ग़ज़ल कहीं है:
हमन है इश्क मस्ताना, हमन को होशियारी क्या ?रहें आजाद या जग से, हमन दुनिया से यारी क्या ?
जो बिछुड़े हैं पियारे से, भटकते दर-ब-दर फिरते,हमारा यार है हम में हमन को इंतजारी क्या ?
खलक सब नाम अपन...

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कबीर भजन

उमरिया धोखे में खोये दियो रे।धोखे में खोये दियो रे।पांच बरस का भोला-भालाबीस में जवान भयो।तीस बरस में माया के कारण,देश विदेश गयो। उमर सब ....चालिस बरस अन्त अब लागे, बाढ़ै मोह गयो।धन धाम पुत्र के कारण, निस दिन सोच भयो।।बरस पचास कमर भई टेढ़ी, सोचत खाट परयो।लड़का बहुरी बोलन लागे, बूढ़ा मर न गयो।।बरस ...

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कबीर दोहे -3

(41)गुरु गोबिंद दोऊ खड़े, का के लागूं पाय।बलिहारी गुरु आपणे, गोबिंद दियो मिलाय॥(42)गुरु कीजिए जानि के, पानी पीजै छानि ।बिना विचारे गुरु करे, परे चौरासी खानि॥(43)सतगुरू की महिमा अनंत, अनंत किया उपकार।लोचन अनंत उघाडिया, अनंत दिखावणहार॥(44)गुरु किया है देह का, सतगुरु चीन्हा नाहिं ।भवसागर के जाल में,...

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कबीर की कुंडलियां - 1

गुरु गोविन्द दोनों खड़े काके लागूं पांयबलिहारी गुरु आपने गोविन्द दियो दिखायगोविन्द दियो दिखाय ज्ञान का है भण्डारासत मारग पर पांव अपन गुरु ही ने डारागोबिन्द लियो बिठाय हिये खुद गुरु के चरननमाथा दीन्हा टेक कियो कुल जीवन अर्पन
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सुख में सुमरन ना किया दुख में कीन्हा यादकबिरा ऐसे दास की कौन सुनै फरिय...

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ऋतु फागुन नियरानी हो

ऋतु फागुन नियरानी हो,कोई पिया से मिलावे ।सोई सुदंर जाकों पिया को ध्यान है,  सोई पिया की मनमानी,खेलत फाग अगं नहिं मोड़े,सतगुरु से लिपटानी ।इक इक सखियाँ खेल घर पहुँची,इक इक कुल अरुझानी ।इक इक नाम बिना बहकानी,हो रही ऐंचातानी ।।पिय को रूप कहाँ लगि बरनौं,रूपहि माहिं समानी ।जौ रँगे रँगे सकल छवि छा...

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कबीर दोहे -4

समझाये समझे नहीं, पर के साथ बिकाय । मैं खींचत हूँ आपके, तू चला जमपुर जाए ॥ 51 ॥
हंसा मोती विण्न्या, कुञ्च्न थार भराय । जो जन मार्ग न जाने, सो तिस कहा कराय ॥ 52 ॥
कहना सो कह दिया, अब कुछ कहा न जाय । एक रहा दूजा गया, दरिया लहर समाय ॥ 53 ॥
वस्तु है ग्राहक नहीं, वस्तु सागर अनमोल । बिना करम का मानव...

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कबीर की ज्ञान, भक्ति और नीति साखियाँ

यहाँ कबीर की ज्ञान, भक्ति और नीति के विषयों से सम्बद्ध साखियाँ संकलित हैं। इनमें आत्मा की अमरता, संसार की असारता, गुरु की महिमा तथा दया, सन्तोष और विनम्रता जैसे सद्गुणों पर बल दिया गया है।
साईं ते सब होत है बन्दे ते कछु नाहिं।राई ते परबत करै, परबत राई माँहि ॥ १॥
ज्यों तिल माँहीं तेल है, जो चकमक...

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कबीर दोहे -5

दया कौन पर कीजिये, का पर निर्दय होय । सांई के सब जीव है, कीरी कुंजर दोय ॥ 81 ॥
जब मैं था तब गुरु नहीं, अब गुरु हैं मैं नाय । प्रेम गली अति साँकरी, ता में दो न समाय ॥ 82 ॥
छिन ही चढ़े छिन ही उतरे, सो तो प्रेम न होय । अघट प्रेम पिंजरे बसे, प्रेम कहावे सोय ॥ 83 ॥
जहाँ काम तहाँ नाम नहिं, जहाँ नाम ...

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कबीर दोहे -6

तब लग तारा जगमगे, जब लग उगे न सूर ।तब लग जीव जग कर्मवश, ज्यों लग ज्ञान न पूर ॥ 101 ॥
आस पराई राख्त, खाया घर का खेत ।औरन को प्त बोधता, मुख में पड़ रेत ॥ 102 ॥
सोना, सज्जन, साधु जन, टूट जुड़ै सौ बार ।दुर्जन कुम्भ कुम्हार के, ऐके धका दरार ॥ 103 ॥
सब धरती कारज करूँ, लेखनी सब बनराय ।सात समुद्र की म...

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कबीर की कुंडलियां

कबीर ने कुंडलियां भी कही हों इसका कहीं उल्लेख नहीं मिलता लेकिन कबीर की कुंडलियां भी प्रचलित हैं। ये कुंडलियां शायद उनके प्रशंसकों या उनके शिष्यों ने कबीर की साखियों को आधार बना लिखी हों। यदि आपके पास इसकी और जानकारी हो या आपने इसपर शोध किया हो तो कृपया जानकारी साझा करें।

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कबीर की साखियां | संकलन

कबीर की साखियां बहुत लोकप्रिय हैं। यह पृष्ठ कबीर का साखी संग्रह है।
साखी रचना की परंपरा का प्रारंभ गुरु गोरखनाथ तथा नामदेव के समय हुआ था। गोरखनाथ की जोगेश्वरी साखी काव्यरूप में उपलब्ध सबसे पहली 'साखी रचना मानी जाती है।
कबीर ने नीति, व्यवहार, एकता, समता, ज्ञान और वैराग्य आदि समझाने के लिए 'साखी'...

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कबीर के कालजयी दोहे

दुख में सुमिरन सब करें, सुख में करे न कोयजो सुख में सुमिरन करें, दुख काहे को होय
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलया कोयजो मन खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय
बड़ा हुआ तो क्या हुआ, जैसे पेड़ खजूरपंथी को छाया नहीं, फल लागे अति दूर
काल करे सो आज कर, आज करे सो अबपल में परलय होएगी, बहुरी करोगे कब
ऐसी ब...

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कबीर के पद

हम तौ एक एक करि जांनां।दोइ कहैं तिनहीं कौं दोजग जिन नाहिंन पहिचांनां ।।एकै पवन एक ही पानीं एकै जोति समांनां।एकै खाक गढ़े सब भांडै़ एकै कोंहरा सांनां।।जैसे बाढ़ी काष्ट ही काटै अगिनि न काटै कोई।सब घटि अंतरि तूँही व्यापक धरै सरूपै सोई।।माया देखि के जगत लुभांनां काहे रे नर गरबांनां।निरभै भया कछू नहिं...

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कंकड चुनचुन

कंकड चुनचुन महल उठाया         लोग कहें घर मेरा। ना घर मेरा ना घर तेरा         चिड़िया रैन बसेरा है॥
जग में राम भजा सो जीता ।        कब सेवरी कासी को धाई कब पढ़ि आई गीता ।         जूठे फल सेवरी के ...

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कबीरदास का जीवन परिचय