एक छलावा | कविता

रचनाकार: विष्णु प्रभाकर | Vishnu Prabhakar

बापू!
तुम मानव तो नहीं थे
एक छलावा थे
कर दिया था तुमने जादू
हम सब पर
स्थावर-जंगम, जड़-चेतन पर
तुम गए—
तुम्हारा जादू भी गया
और हो गया
एक बार फिर
नंगा।
यह बेईमान
भारती इनसान।

--विष्णु प्रभाकर