एक बार की बात है--कई लड़के मिलकर नाई का खेल खेल रहे थे। धनपत ने एक लड़के की हजामत बनाते हुए बांस की कमानी से उसका कान ही काट लिया। उस लड़के की माँ झल्लाई हुई उनकी माता से उलाहना देने आई। आपने जैसे ही उसकी आवाज़ सुनी, खिड़की के पास दुबक गये। माँ ने दुबकते हुए उन्हें देख लिया था, पकडकर चार झापड़ दिये।
माँ--उस लडके के कान तूने क्यों काटे?
'मैंने उसके कान नहीं काटे, बल्कि बाल बनाया है।'
'उसके कान से तो खून बह रहा है और तू कह रहा है कि मैंने बाल बनाये।'
'सभी तो इसी तरह खेल रहे थे।'
'अब ऐसा न खेलना।'
'अब कभी न खेलूँगा।'
[भारत-दर्शन संकलन]