प्रेमचंद का अपनी पत्नी शिवरानी देवी से अटूट अनुराग था। प्रेमचंद जब फ़िल्मी दुनिया में लिखने के लिए मुंबई गए तो वे अकेले ही गए थे। वहाँ से उन्होंने अपनी पत्नी को 4 जून 1934 में एक पत्र लिखा था:
"अब तुम्हारे पास बेटी और बेटा भी पहुँच जाएँगे। तुम्हारे पास तो सभी होंगे, भाई-बंधु, लड़के-लड़की सभी, और मुझे तो तुम लोगों के बिना मुंबई होते हुए भी सूनी ही मालूम होती है। यही बार-बार इच्छा होती है कि छोड़छाड़ कर भाग खड़ा होऊँ। बार-बार यह झुंझलाहट होती है, कहाँ से यह बला मोल ले ली। मैंने अभी मकान नहीं लिया है, अभी मकान लूँगा तो वह सूना घर मुझे और खाने दौड़ेगा। मकान तो उसी समय लूँगा, जब तुम्हारा पत्र आने के लिए आ जाएगा।"
प्रेमचंद का अपनी पत्नी के प्रति अनुराग सहज ही उनके पत्रों में देखने को मिलता है। उपरोक्त पत्र के ग्यारह दिन बाद 15 जून को प्रेमचंद जी ने फिर लिखा था:
"तुम तो इन सबों के साथ खुश हो, इधर मैं सोचता हूँ कि एक-डेढ़ महीना कैसे बीतेगा! इसे समझ ही नहीं पाता हूँ, आखिर काम ही करूँ तो कितना करूँ! आखिर बैल तो नहीं हूँ, फिर आदमी के लिए मनोरंजन भी तो कोई चीज़ होती है। मेरा मनोरंजन तो सबसे अधिक घर पर बाल-बच्चों से ही हो सकता है। मेरे लिए दूसरा कोई मनोरंजन ही नहीं है। खाना भी खाने बैठता हूँ, तब भी अच्छा नहीं मालूम होता; क्योंकि यहाँ साहबी ठाट-बाट हैं और साहब बनने से मेरी तबीयत घबराती है। ...मेरी तो यह समझ में नहीं आता कि जो लोग घर-बार से अलग रहते होंगे, वे कैसे रहते हैं? मेरी तो यह महीना-डेढ़ महीना याद करके नानी मरती है कि किस तरह ये दिन कटेंगे? क्या करूँ? किसी तरह से काटना होगा।"
"........बल्कि यह कहता हूँ कि तुम्हारा उपासक हूँ। तुम्हारे बिना मुझे अकेले रहना दूभर हो रहा है।"
प्रस्तुति: रोहित कुमार 'हैप्पी'