अंगहीन धनी

रचनाकार: भारतेन्दु हरिश्चन्द्र

एक धनिक के घर उसके बहुत-से प्रतिष्ठित मित्र बैठे थे। नौकर बुलाने को घंटी बजी। मोहना भीतर दौड़ा, पर हँसता हुआ लौटा।

और नौकरों ने पूछा, "क्यों बे, हँसता क्यों है?"

तो उसने जवाब दिया,"भाई, सोलह हट्टे-कट्टे जवान थे। उन सभों से एक बत्ती न बुझे। जब हम गए, तब बुझे।"

- भारतेंदु हरिश्चंद्र