हर बार अपनी तड़पती छाया को अकेला छोड़ कर लौट आता हूँ मैं जहाँ झूठ है , फ़रेब है , बेईमानी है , धोखा है -- हर बार अपने अस्तित्व को खींच कर ले आता हूँ दर्द के इस पार जैसे-तैसे एक नई शुरुआत करने कुछ नए पल चुरा कर फिर से जीने की कोशिश में हर बार ढहता हूँ , बिखरता हूँ किंतु हर हत्या के बाद वहीं से जी उठता हूँ जहाँ से मारा गया था जहाँ से तोड़ा गया था वहीं से घास की नई पत्ती-सा फिर से उग आता हूँ शिकार किए जाने के बाद भी हर बार एक नई चिड़िया बन जाता हूँ एक नया आकाश नापने के लिए ...
- सुशांत सुप्रिय मार्फ़त श्री एच.बी. सिन्हा 5174 , श्यामलाल बिल्डिंग , बसंत रोड,( निकट पहाड़गंज ) , नई दिल्ली - 110055 मो: 9868511282 / 8512070086 ई-मेल : sushant1968@gmail.com
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