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समा जाता है श्वास में श्वास शेष रहता है फिर कुछ नहीं इस अनंत आकाश में शब्द ब्रह्म ढूँढ़ता है पर-ब्रह्म को
शब्द में अर्थ नहीं समाता समाया नहीं समाएगा नहीं काम आया है वह सदा आता है आता रहेगा उछालने को कुछ उपलब्धियाँ छिछली अधपकी
- विष्णु प्रभाकर
Bharat-Darshan, Hindi literary magazine from New Zealand
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