मैं रहूँ या न रहूँ, मेरा पता रह जाएगा शाख़ पर यदि एक भी पत्ता हरा रह जाएगा
बो रहा हूँ बीज कुछ सम्वेदनाओं के यहाँ ख़ुश्बुओं का इक अनोखा सिलसिला रह जाएगा
अपने गीतों को सियासत की ज़ुबां से दूर रख पँखुरी के वक्ष में काँटा गड़ा रह जाएगा
मैं भी दरिया हूँ मगर सागर मेरी मन्ज़िल नहीं मैं भी सागर हो गया तो मेरा क्या रह जाएगा
कल बिखर जाऊँगा हरसू, मैं भी शबनम की तरह किरणें चुन लेंगी मुझे, जग खोजता रह जाएगा
- राजगोपाल सिंह
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