लालों में वह लाल बहादुर, भारत माता का वह प्यारा। कष्ट अनेकों सहकर जिसने, निज जीवन का रूप संवारा।
तपा तपा श्रम की ज्वाला में, उस साधक ने अपना जीवन। बना लिया सच्चे अर्थों में, निर्मल तथा कांतिमय कुंदन।
सच्चरित्र औ' त्याग-मूर्ति था, नहीं चाहता था आडम्बर। निर्धनता उसने देखी थी, दया दिखाता था निर्धन पर।
नहीं युद्ध से घबराता था, विश्व-शांति का वह दीवाना। इसी शांति की बलवेदी पर, उसे ज्ञात था मर-मिट जाना।
-डा राणा प्रताप सिंह गन्नौरी साभार - मीठे बोल
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