अकबर ने एक दिन बीरबल से पूछा--"बीरबल! इस संसार में इतनी विविधता क्यों है? ऐसा क्यों है कि कोई गरीब है तो कोई अमीर? किसी के पास इतना वैभव है कि उसकी सात पुश्तें भी उसे खर्च नहीं कर सकें और किसी को दो जून रोटी के भी लाले पड़े हैं?"
बीरबल ने कहा--"जहाँपनाह! यह तो परमपिता का न्याय ही जाने! मैं तो बस इतना मानता हूँ कि जिसका जितना दाय है, ईश्वर उसे उतना अवश्य देता है।"
अकबर ने कहा--"ईश्वर को बीच में न लाओ बीरबल! ईश्वर तो सबका पिता है। उसे परमपिता कहते हैं। भला कोई पिता ऐसा हो सकता है जो अपने एक पुत्र के लिए एक और दूसरे पुत्र के लिए दूसरी व्यवस्था करे? पिता की नजर में तो सभी बच्चे एक जैसे ही होंगे न!"
बीरबल उस दिन चुप रह गया। दूसरे दिन बीरबल शाम को अकबर के साथ छत पर टहल रहा था। उसने अकबर से पूछा--"जहाँपनाह! गुस्ताखी माफ हो। बादशाह होने के नाते आपकी नजर में आपकी तमाम प्रजा एक जैसी है। है न?"
"इसमें क्या शक है?" अकबर ने कहा।
"आपकी सल्तनत में सभी के लिए एक जैसा कानून है। है न?" बीरबल ने पूछा।
"हाँ, है, लेकिन तुम यह सब क्यों पूछ रहे हो?" अकबर ने पूछा।
"फिर आपकी सल्तनत में अलग-अलग काम करनेवाले मुलाजिमों के लिए अलग-अलग वेतन क्यों है? सबकी सेवा तो राज्य ही लेता है, सबको समान रूप से अपने काम में अपना समय लगाना पड़ता है। फिर समान समय के लिए समान वेतन क्यों नहीं?"
"अरे बीरबल! काम के महत्त्व पर वेतन निर्धारित होता है, समय के आधार पर नहीं, इतना भी नहीं समझते?" अकबर ने कहा।
बीरबल बोला--"ईश्वर ने भी सूरज की रोशनी, साँस लेने के लिए हवा, पीने के लिए पानी सबको समान रूप से प्रदान किए हैं, जैसे आप के राज्य में सबके लिए समान कानून और समान सार्वजनिक सुविधाएँ हैं। फिर ईश्वर सबको समान रूप से कार्य करने की सामर्थ्य भी देता है। अब व्यक्ति जितनी निष्ठा और लगन से काम करता है, उसे उतना ही उसके श्रम का फल भी प्राप्त होता है। मुझे विश्वास हैं कि अब आप अवश्य समझ गए होंगे कि परमपिता परमात्मा इस संसार में रहनेवालों को अलग-अलग फल क्यों देता है।" बीरबल ने कहा।
अकबर को बीरबल की बात पसन्द आई और उन्होंने बीरबल की पीठ थपथपाते हुए उसकी सराहना की।
[अकबर बीरबल] |