ऐसे कुछ और सवालों को उछाला जाये किस तरह शूल को शूलों से निकाला जाये
फिर चिराग़ों को सलीक़े से जलाना होगा तम है जिस छोर, उसी ओर उजाला जाये
ये ज़रूरी है कि ख़यालों पे जमी काई हटे फिर से तहज़ीब के दरिया को खँगाला जाये
फावड़े और कुदालें भी तो ढल सकती हैं अब न इस्पात से ख़ंज़र कोई ढाला जाये
-राजगोपाल सिंह
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