तुम्हारी फ़ाइलों में गाँव का मौसम गुलाबी है मगर ये आँकड़ें झूठे हैं ये दावा किताबी है
उधर जम्हूरियत का ढोल पीटे जा रहे हैं वो इधर पर्दे के पीछे बर्बरीयत है नवाबी है
लगी है होड़-सी देखो अमीरी और ग़रीबी में ये पूँजीवाद के ढाँचे की बुनियादी ख़राबी है
तुम्हारी मेज़ चाँदी की तुम्हारे जाम सोने के यहाँ ज़ुम्मन के घर में आज भी फूटी रक़ाबी है
-अदम गोंडवी
* जम्हूरियत = प्रजातंत्र रक़ाबी = तश्तरी /प्लेट
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